Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 368
________________ ३४६ जैनधर्म न्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ तोर्थङ्करोंके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान इस तरह चार कल्याणक हुए हैं । तथा १९ वें मल्लिनाथ तीर्थङ्करका समवसरण भी आया था । यहाँ पर दिल्लीके लाला हरसुखदासजीका बनवाया हुआ एक विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर और धर्मशाला है। पासमें ही श्वेताम्बरोंका भी मन्दिर है । धर्मशालासे लगभग २ - ३ मीलपर चारों तीर्थङ्करों की चार दि० जैन नशियाँ बनी हुई हैं जो प्राचीन हैं। प्रति वर्ष कार्तिक सुदी ८ से पूर्णमासी तक दिगम्बर जैनोंका बहुत बड़ा मेला भरता है । चौरासी - मथुरा शहर से करीब १ || मील पर दिगम्बर जैनोंका यह प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र है, परम्पराके अनुसार यह अन्तिम केवली श्रीजम्बू स्वामीका मोक्ष स्थान माना जाता है । यहाँपर एक विशाल जैन मन्दिर है जिसमें उनके चरण चिह्न स्थापित हैं । प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण २ से अष्टमी तक रथोत्सव होता है । यहाँ से पासमें ही प्रसिद्ध कंकाली टीला है जहाँसे जैन पुरातत्वकी अति प्राचीन सामग्री प्राप्त हुई है । यहाँ पर ही भा० द० जैन संघका संघभवन बना हुआ है जिसमें उसका प्रधान कार्यालय तथा एक विशाल सरस्वती भवन है । पासमें ही श्रीऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम स्थापित है । सौरीपुर —-मैनपुरी जिलेके शिकोहाबाद नामक स्थानसे १३ मीलपर यमुना नदीके तटपर बटेश्वर नामका एक प्राचीन गाँव है। गाँव के बीचमें विशाल जैन मन्दिर है। नीचे धर्मशाला है। यहाँसे १ मील जंगलमें कई प्राचीन मन्दिर हैं और एक छतरी है जिसमें श्रीनेमिनाथके चरण चिह्न स्थापित हैं । इस स्थानको श्रीनेमिनाथका जन्म स्थान माना जाता है । बुन्देलखण्ड व मध्यप्रान्त ग्वालियर - यह कोई तीर्थ क्षेत्र तो नहीं है किन्तु यहाँके किलेके आस पास चट्टानोंमें बहुत-सी दिगम्बर जैन मूर्तियाँ बनी

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411