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जैनधर्म
न्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ तोर्थङ्करोंके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान इस तरह चार कल्याणक हुए हैं । तथा १९ वें मल्लिनाथ तीर्थङ्करका समवसरण भी आया था । यहाँ पर दिल्लीके लाला हरसुखदासजीका बनवाया हुआ एक विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर और धर्मशाला है। पासमें ही श्वेताम्बरोंका भी मन्दिर है । धर्मशालासे लगभग २ - ३ मीलपर चारों तीर्थङ्करों की चार दि० जैन नशियाँ बनी हुई हैं जो प्राचीन हैं। प्रति वर्ष कार्तिक सुदी ८ से पूर्णमासी तक दिगम्बर जैनोंका बहुत बड़ा मेला भरता है ।
चौरासी - मथुरा शहर से करीब १ || मील पर दिगम्बर जैनोंका यह प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र है, परम्पराके अनुसार यह अन्तिम केवली श्रीजम्बू स्वामीका मोक्ष स्थान माना जाता है । यहाँपर एक विशाल जैन मन्दिर है जिसमें उनके चरण चिह्न स्थापित हैं । प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण २ से अष्टमी तक रथोत्सव होता है । यहाँ से पासमें ही प्रसिद्ध कंकाली टीला है जहाँसे जैन पुरातत्वकी अति प्राचीन सामग्री प्राप्त हुई है । यहाँ पर ही भा० द० जैन संघका संघभवन बना हुआ है जिसमें उसका प्रधान कार्यालय तथा एक विशाल सरस्वती भवन है । पासमें ही श्रीऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम स्थापित है ।
सौरीपुर —-मैनपुरी जिलेके शिकोहाबाद नामक स्थानसे १३ मीलपर यमुना नदीके तटपर बटेश्वर नामका एक प्राचीन गाँव है। गाँव के बीचमें विशाल जैन मन्दिर है। नीचे धर्मशाला है। यहाँसे १ मील जंगलमें कई प्राचीन मन्दिर हैं और एक छतरी है जिसमें श्रीनेमिनाथके चरण चिह्न स्थापित हैं । इस स्थानको श्रीनेमिनाथका जन्म स्थान माना जाता है ।
बुन्देलखण्ड व मध्यप्रान्त
ग्वालियर - यह कोई तीर्थ क्षेत्र तो नहीं है किन्तु यहाँके किलेके आस पास चट्टानोंमें बहुत-सी दिगम्बर जैन मूर्तियाँ बनी