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इतिहास
५३ निर्माण किया, जैनप्रतिमाओंकी स्थापना की, जैन तपस्वियोंके निमित्त गुफाएँ तैयार कराई और जैनाचार्योंको दान दिया। ___इस वंशके एक राजाका नाम मारसिंह द्वितीय था । इसका शासनकाल चेर, चोल और पाण्ड्य वंशोंपर पूर्ण विजय प्राप्तिके लिये प्रसिद्ध है । यह जैन सिद्धान्तोंका सच्चा अनुयायी था। इसने अत्यन्त ऐश्वर्यपूर्वक राज्य करके राजपद त्याग दिया और धारवार प्रान्तके वांकापुर नामक स्थानमें अपने गुरु अजितसेनके सन्मुख समाधिपूर्वक प्राणत्याग किया। एक शिलालेखके आधारपर इसकी मृत्यु तिथि ९७५ ई. निश्चित की गई है। ___ चामुण्डराय राजा मारसिंह द्वितीयका सुयोग्य मंत्री था। उसके मरनेपर वह उसके पुत्र राजा राचमल्लका मंत्री और सेनापति हुआ। इस मंत्रीके शौर्यके कारण ही मारसिंह अनेक विजय प्राप्त कर सका। श्रवणवेलगोला (मैसूर) के एक शिलालेखमें इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है, धरमधुरन्धर वीरमार्तण्ड, रणरंगसिंह, त्रिभुवनवीर, वैरीकुलकालदण्ड, सत्ययुधिष्ठिर, सुभटचूड़ामणि आदि उसकी अनेक उपाधियाँ थीं, जो उसकी शूरवीरता और धार्मिकताको बतलाती हैं । चामुण्डरायने ही श्रवणवेलगोला (मैसूर ) के विन्ध्यगिरिपर गोमटेशकी विशालकाय मूर्ति स्थापित कराई थी, जो मूर्ति आज दुनियाकी अनेक आश्चर्यजनक वस्तुओंमें गिनी जाती है । वृद्धावस्थामें चामुण्डरायने अपना अधिकांश समयधार्मिक कार्यों में बिताया। चमुण्डराय जैनधर्मके उपासक तो थे ही, मर्मज्ञ विद्वान भी थे। उनका कनड़ी भाषाका त्रिपष्ठि-लक्षण महापुराण प्रसिद्ध है। संस्कृतमें भी उनका बनाया हुआ चारित्रसार नामक ग्रन्थ है। चामुण्डरायकी गणना जैनधर्मके महान उन्नायकोंमें की जाती हैं । इनके समयमें जैन साहित्यकी भी श्रीवृद्धि हुई । सिद्धान्त ग्रन्थोंका सारभून श्रीगोमट्टसार नामक महान जैन ग्रन्थ इन्होंके निमित्तसे रचा गया था। और उन्हींके गोम्मटराय नामपर