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चारित्र
१८७ सकते । इसलिये उनको इस तरहसे बाँधना चाहिये कि यदि कभी घरमें आग लग जाये तो वे बन्धन छुड़ाकर भाग सकें।
२. क्रूरता पूर्वक डण्ड या कोड़से पीटना ।।
३. निर्दय होकर हाथ, पैर, कान, नाक वगैरहका काट डालना । किन्तु यदि किसी पा या मनुष्यके शरीरका कोई अवयव सड़ गया हो या शरीर में फोड़ा हो गया हो तो उसके काटने या चीरने में कोई दोष नहीं है।
४. गुम्से में आकर या लोभसे मनुष्य या पाके ऊपर उमको शक्तिसे ज्यादा बोझा लादना या शक्तिसे अधिक काम लेना। श्रावकको चाहिये कि मनुष्य जितना बोझा म्वयं उठाकर ले जा सके और उतार कर नीचे रख सके उतना ही बोझा उससे उठवाये और रखवाये । इसी तरह चौपाया जितना बोझा लादकर अच्छी तरह चल सके उतना ही उसपर लादे । उममें भी ममय का ध्यान अवश्य रखे । उचित समय तक हो उनसे काम लेना चाहिये । यदि श्रावक खेती करता हो तो हल और गाड़ी वर्गरहमें बैलोंको समयसे जोते और समयसे खोल दे। शक्तिसे अधिक काम लेना भी हिंसा ही है।
५. भूख प्याससे पीड़ित प्राणी मर भी जाता है इसलिये खाना किसीका भी न रोकना चाहिये। यदि किसीने अपराध किया हो तो उसे डाटनेके लिय मुँहसे यह चाहे कह दे कि आज तुझे भोजन नहीं मिलंगा, किन्तु भोजनका समय आनेपर तो नियमसे दूसरोंको खिलाकर ही स्वयं खाना चाहिये । हाँ, यदि कोई अपना आश्रित वीमार हो या उसने स्वयं ही उपवास किया हो तो बात दूसरी है। अतः श्रावकको इस बातका बरावर ध्यान रखना चाहिये कि अहिंसात्रतमें दोप न आने पाये ।
यदि अहिंसावती श्रावक अपने आश्रितोंके साथ ऐसा प्रेममय व्यवहार रखे तो उसे इससे आर्थिक दृष्टिसे भी लाभ ही रहेगा, क्योंकि प्रेममय व्यवहारसे कर्मचारीगण उसके कामको अपना समझकर दिल लगाकर काम करेंगे और उसके हानि-लाभको