Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 302
________________ २८० जैनधर्म तो खारवेलके कारण ही महत्त्वपूर्ण है परन्तु स्थापत्यकलाकी दृष्टिसे रानी और गणेश गुफाएँ उल्लेखनीय हैं। उनमें भगवान् पार्श्वनाथका जीवनवृत्तान्त बड़ी कुशलतासे खोदा गया है । कलाकी दृष्टिसे मथुराके आयागपट, बोड़न स्तूप और तोरण उल्लेखनीय हैं। जैन स्थापत्य कला अपेक्षाकृत अर्वाचीन उदाहरण आबू आदि स्थानों में और राणा कुम्भाके समयके अवशेषोंमें मिलते हैं। अलवर राज्यके भानुगढ़ स्थानमें भी बहुत सुन्दर जैन मन्दिर हैं । उनमें से एक तो १०-११वीं शतीका है और खजुराहोके जैसा हो सुन्दर है। मि० फर्ग्युसनका कहना है कि राजपुतानेमें जैनी कम रह गये हैं, फलतः उनके मन्दिरोंकी दुरवस्था है । किन्तु भारतीय कलाके प्रेमियों के लिए वे बहुत कामके हैं । जैनों की स्थापत्य कलाने गुजरातकी भी शोभा बढ़ायी है । यह सब मानते हैं कि यदि जैन कला और स्थापत्य जीवित न होते तो मुसलिम कलासे हिन्दूकला दूषित हो जाती । फर्ग्युसनने स्थापत्यपर एक ग्रन्थ लिखा है । उसमें वह लिखता है कि जो कोई भी बारहवीं शतीका ब्राह्मण धर्मका मन्दिर है, वह गुजरातमें जैनोंके द्वारा व्यवहृत शैलीका उदाहरण है। राणकपुरके जैन मन्दिरके अनेक स्तम्भोंको देखकर कलाके पारखी मुग्ध हो जाते हैं। दक्षिणमें जहाँ बौद्ध धर्मके स्थापत्यके इने-गिने अवशेष हैं वहाँ जैन धर्मके प्राचीन स्थापत्यके बहुतसे उदाहरण आज भी उपलब्ध हैं । इनमें प्रमुख है एलोराकी इन्द्रसभा और जगन्नाथ सभा । संभवत: इनकी खुदाई चालुक्योंकी बादामी शाखा या राष्ट्रकूटोंके तत्त्वावधान में हुई होगी; क्योंकि बादामीमें भी इसी तरहकी एक जैन गुफा है जो सातवीं शतीकी मानी जाती है । दक्षिण में जैन मन्दिरों और मूर्तियोंको बहुतायत है । श्रवणबेलगोला (मैसूर) में गोमट्टस्वामीकी प्रसिद्ध जैन मूर्ति है जो स्थापत्य कलाकी दृष्टिसे अपूर्व है । वहाँ अनेक जैन मन्दिर हैं

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