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जैनधर्म श्वेताम्बर दोनों ही समानरूपसे मानते और पूजते हैं। श्रीऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ और महावीरके सिवा शेष बीस तीर्थकरोंने इसी पर्वतसे निर्वाण प्राप्त किया था। २३वें तीर्थकर श्रीपार्श्वनाथके नामके ऊपरसे आज यह पर्वत 'पारसनाथ हिल' के नामसे प्रसिद्ध है। पूर्वीय रेलवेपर इसके रेलवे स्टेशनका नाम भी कुछ वर्षोंसे पारसनाथ हो गया है। इस पर्वतकी चोटियोंपर बने अनेक मन्दिरोंका दर्शन करनेके लिये प्रतिवर्ष हजारों दिगम्बर और श्वेताम्बर स्त्री पुरुष आते हैं। इसकी यात्रामें १८ मीलका चक्कर पड़ता है और ८ घंटे लगते हैं।
कुलुआ पहाड़-यह पहाड़ जंगलमें है। गयासे जाया जाता है। इसकी चढ़ाई २ मील है। इसपर सैकड़ों जैन प्रतिमाएँ खण्डित पड़ी हैं। अनेक जैन मन्दिरोंके भग्नावशेष भी पड़े हैं। कुछ जैन मन्दिर और प्रतिमाएँ अखण्डित भी हैं। कहा जाता है कि इस पहाड़पर १०वें तीर्थङ्कर शीतलनाथने तप करके केवलज्ञान प्राप्त किया था। इण्डियन एन्टीक्वेरी (मार्च १९०१) में एक अंग्रेज लेखकने इसके सम्बन्धमें लिखा था-'पूर्वकालमें यह पहाड़ अवश्य जैनियोंका एक प्रसिद्ध तीर्थ रहा होगा; क्योंकि सिवाय दुर्गादेवीकी नवीन मूर्तिके और बौद्धमूर्तिके एक खण्डके अन्य सब चिह्न जो पहाड़पर हैं, वे सब जैन तीर्थङ्करोंको ही प्रकट करते हैं।'
गुणावा-यह भगवान महावीरके प्रथम गणधर गौतम स्वामीका निर्वाणक्षेत्र है । गया-पटना ( ई० आर०) लाईनमें स्थित नवादा स्टेशनसे डेढ़ मील है।
पावापुर-गुणावासे १३ मोलपर अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीरका यह निर्वाणक्षेत्र है। उसके स्मारकस्वरूप तालाबके मध्यमें एक विशाल मन्दिर है, जिसको जलमन्दिर कहते हैं । जलमन्दिरमें महावीर स्वामी, गौतम स्वामी और सुधर्मा स्वामीके चरण स्थापित हैं। कार्तिक कृष्णा अमावस्याको भग