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जैन-दर्शन
है । भौतिक विज्ञान की भाँति दर्शन केवल जगत् का विश्लेषरण या स्पष्टीकरण ही नहीं करता ग्रपितु उसकी उपयोगिता का भी विचार करता है । उपयोगितावाद दर्शन की मौलिक सूझ है । इसी सूझ के बल पर दर्शन जीवन की वास्तविकता समझने का दावा कर सकता है । जीवन की वास्तविकता जगत् की वास्तविकता से सम्बद्ध है, अतः जीवन की वास्तविकता समझने वाला जगत् की वास्तविकता भी समझ लेता है, यह स्वतः सिद्ध है |
विज्ञान का क्षेत्र :
बरट्रन्ड रसल लिखता है : विज्ञान के दो प्रयोजन होते हैं ।. एक ओर तो यह इच्छा रहती है कि अपने क्षेत्र में जितना जाना जा सके उतना जान लिया जाय । दूसरी ओर यह प्रयत्न रहता है कि जो कुछ जान लिया गया है उसे कम से कम 'सामान्य नियमों' में गूँथ लिया जाय । रसल के इस कथन में विज्ञान का क्षेत्र दो भागों में विभाजित किया गया है । प्रथम भाग में विज्ञान के अध्ययन की सामग्री की ओर संकेत है । यह तो प्रायः स्पष्ट ही है कि विज्ञान जितनी भी सामग्री एकत्र करता है, अपने अवलोकन के प्राध र पर । अवलोकन ( Observation ) को छोड़कर उसके पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिसकी सहायता से वह अपनी सामग्री जुटा सके । धर्म और दर्शन की तरह केवल श्रद्धा या चिन्तन से विज्ञान का कार्य नहीं चल सकता | विज्ञान तो प्रत्येक प्रयोग को अवलोकन की कसौटी पर कसता है । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो विज्ञान प्रत्यक्ष अनुभववादी है । जिस चीज का प्रत्यक्ष अनुभव होता है वही चीज विज्ञान की दृष्टि से ठीक होती है । उसकी सामग्री का ग्राधार प्रत्यक्ष अनुभव है । इन्द्रियों की सहायता से मनुष्य जितना अनुभव प्राप्त करता है वही विज्ञान का विषय है । ग्रात्मप्रत्यक्ष, योगिप्रत्यक्ष या अन्य प्रत्यक्ष में उसका विश्वास नहीं होता । विज्ञान का सर्व प्रथम कार्य यही है कि वह अनुभव के आधार पर जितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है, प्राप्त करने की कोशिश करता है । अपने अभीष्ट विषय को दृष्टि में रखते हुए इन्द्रियों और अन्य भौतिक साधनों की सहायता