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जैन-दर्शन
कि तत्त्व का मानसिक प्रवृत्ति पर नियन्त्रण रहता है तो हम दोनों में एकता ला सकते हैं। ___ बोसांकेट की धारणा के अनुसार विचार या तर्क का लक्ष्य 'पूर्ण' (Whole) है । यह 'पूर्ण' स्वभाव से ही निर्माण करने वाला है । जब यह विचार अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करता है-पूर्णता तक पहुँच जाता है, तभी तत्त्व की सम्पूर्णता का निर्माण होता है । यह पूर्णता आध्यात्मिक अद्वैत के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यह आध्यात्मिक अद्वैत ही अनुभव की एकता है। यह अन्तिम आध्यात्मिक तत्त्व ही वास्तविक तत्त्व है । वाह्य जगत् अनुभव की एकता-आध्यात्मिक तत्त्व के अतिरिक्त कुछ नहीं है। बोसांकेट ने अनुभव के साथ ही साथ मूल्य (Value) पर भी जोर दिया और कहा कि प्राध्यात्मिक तत्त्व में मूल्य की एकता ( Unity of Values) का भी समावेश है। इस प्रकार बोसांकेट का आदर्शवाद बुद्धि-तर्क-विचार पर विशेष भार देता हुआ आध्यात्मिक एकता की ओर बढ़ जाता है। आदर्शवाद की इस धारा को हम आध्यात्मिक अद्वैतवाद कह सकते हैं।
इस प्रकार हमने संक्षेप में पाश्चात्य आदर्शवादी विचारधाराओं का परिचय देने का प्रयत्न किया है। अब हम यह चाहते हैं कि इसी ढंग से भारतीय आदर्शवादी परंपरा का भी संक्षिप्त परिचय हो जाय ।
बौद्धदर्शन की महायान शाखा और अद्वैत वेदान्त, भारतीय आदर्शवाद के प्रतिनिधि हैं। इन दोनों परम्पराओं में भारतीय आदर्शवाद अच्छी तरह समा सकता है, ऐसा कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी । वौद्धदशन की मुख्यरूप से दो धाराएँ हैं-हीनयान और महायान । इनमें से हीनयान खुले रूप से यथार्थवादी है, इसमें कोई संशय नहीं । महायान के पुनः दो भेद हैं-माध्यमिक और योगाचार । माध्यमिक विचारधारा के अनुसार तत्त्व 'चतुष्कोटिविनिमुक्त' कहा गया है। मानवीय बुद्धि की चारों कोटियाँ तत्त्व-ग्रहण की योग्यता से ?-Life and Philosophy in Contemporary British
Philosophy, पृष्ठ ६१ २--चतुष्कोटिविनिमुक्त तत्त्वं माध्यमिका विदुः ।