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ज्ञानवाद और प्रमाणशास्त्र
२४७ अनुमान-अनुमान प्रमाण के तीन भेद किए गए हैं--पूर्ववत्, शेषवत्, और दृष्टसाधर्म्यवत् । न्याय, बौद्ध और सांख्यदर्शन में भी अनुमान के ये ही तीन भेद बताये गये हैं। उनके यहाँ अन्तिम भेद का नाम दृष्टसाधर्म्यवत् न होकर सामान्यतोदृष्ट है।
पूर्ववत्.--पूर्वपरिचित लिंग (हेतु) द्वारा पूर्व परिचित पदार्थ का ज्ञान करना पूर्ववत् अनुमान है। एक माता अपने पुत्र को बाल्यावस्था के समय देखती है । पुत्र कहीं बाहर चला जाता है। कुछ वर्षों के बाद वह युवावस्या में प्रविष्ट हो जाता है । जव वह वापिस घर आता है तो पहले माता उसे नहीं पहचान पाती है । थोड़ी देर बाद उसके शरीर पर कोई ऐसा चिन्ह देखती है जो बाल्यावस्था में भी था। यह देखते ही वह तुरन्त जान जाती है कि यह मेरा ही पुत्र है । यह पूर्ववत् अनुमान का उदाहरण है।
शेषवत्-शेषवत् अनुमान पाँच प्रकार का है-कार्य से कारण का अनुमान, कारण से कार्य का अनुमान, गुण से गुरणी का अनुमान, अवयव से अवयवी का अनुमान और आश्रित से आश्रय का अनुमान । __ शब्द से शंख का, ताडन से भेरी का, ढक्कित से वृषभ का, केकायित से मयूर का, हेषित से अश्व का, गुलगुलायित से गज का, धणधरणायित से रथ का अनुमान कार्य से कारण का अनुमान है।
तन्तु से ही पट होता है, पट से तन्तु नहीं, मृत्पिण्ड से ही घट बनता है, घट से मृत्पिण्ड नहीं इत्यादि कारणों से कार्य-व्यवस्था करना कारण से कार्य का अनुमान है।
१-न्यायसूत्र १।११५, उपायहृदय पृ० १३, सांख्यकारिका ५-६ २-माया पुत्त जहा नळं जुवाणं पुणरागयं ।
काई पच्चभिजाणेज्जा, पुलिंगेरा केराई । तं जहा--खत्ते णवा वण्रोण वा लंछरोण वा मसेण वा तिलएण वा।
-~-अनुयोगद्वार सूत्र, प्रमाण प्रकरण