________________
२६०
जैन-दर्शन "हाँ, गौतम! यह सम्भव है।"
इस प्रकार महावीर ने परमाणु नित्यवाद का खण्डन किया। उन्होंने ऐसे परमाणु की सत्ता मानने से इनकार कर दिया, जो एकान्त नित्य हो । जैसे परमाणु के कार्य घटादि में परिवर्तन होता है और वह अनित्य है, उसी प्रकार परमाणु भी अनित्य है। दोनों का समानरूप से नित्यानित्य स्वभाव है। एकता और अनेकता :
महावीर प्रत्येक द्रव्य में एकता और अनेकता दोनों धर्म मानते हैं। जीव द्रव्य की एकता और अनेकता का प्रतिपादन करते हुए उन्होंने कहा-"सोमिल ! द्रव्य दृष्टि से मैं एक हूँ । ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से. मैं दो हूँ । न बदलने वाले प्रदेशों की दृष्टि से मैं अक्षय हैं, अव्यय हूँ, अवस्थित हूँ। बदलते रहने वाले उपयोग की दृष्टि से मैं अनेक हूँ ।" . इसी प्रकार अजीव द्रव्य की एकता और अनेकता का स्पष्टीकरण करते हुए उन्होंने कहा-"गौतम! धर्मास्तिकाय द्रव्य दृष्टि से एक है, इसलिए वह सर्वस्तोक है। वही धर्मास्तिकाय प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुण भी है" । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, आकाश आदि द्रव्यदृष्टि से एक और प्रदेशदृष्टि से अनेक हैं । परस्पर विरोधी माने जाने वाले धर्मों का एक ही द्रव्य में अविरोधी समन्वय करना अनेकान्तवाद की देन है।
.
१-एस णं भंते ! पोग्गले तीतमणंतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी,
समयं लूक्खी वा अलुक्खी वा? पूव्विं च णं करणेणं अणेगवन्तं प्रणेगरूवं परिणामं परिणमति, अह से परिणामे निज्जिन्ने भवति तो पच्छा एगवन्ने एगरूवे सिया । । हंता गोयमा !.... एकरूवे सिया । -वही १४।४।५१ २-सोमिला ! दवट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसरणट्ठयाए दुविहे अहं,
पएसठ्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अह, अवट्ठिए वि अहं,
उवयोगट्ठयाए अणेगभूयभावभविए वि अहं। -वही १।८।१० ३-गोयमा ! सव्वत्थोवे एगे धम्मत्थिकाए दवट्ठयाए, से चेव पएस
ट्ठयाए असंखेजगुणे........। सव्वत्थावे पोग्गलत्थिकाए दव्वट्ठयाए, से चेवपए सट्ठयाए असंखेज्जगुणे ।
-प्रज्ञापनापद ३१५६