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ज्ञानवाद और प्रमाणशास्त्र
काल की दृष्टि से भी अनुमान तीन प्रकार का होता है । अनुयोगद्वार में इन तीनों प्रकारों का वर्णन है :
१-अतीतकालग्रहण-तृणयुक्तवन, निष्पन्नशस्यवाली पृथ्वी, जल से भरे हुए कुण्ड-सर-नदी-तालाव आदि देखकर यह अनुमान करना कि अच्छी वर्षा हुई है, अतीतकालग्रहण है ।
२-प्रत्युत्पन्नकालग्रहण-भिक्षाचर्या के समय प्रचुर मात्रा में भिक्षा प्राप्त होती देखकर यह अनुमान करना कि सुभिक्ष है, प्रत्युत्पन्नकाल
३-अनागतकालग्रहण-मेघों की निर्मलता, काले-काले पहाड़, विद्य तयुक्त वादल, मेघगर्जन, वातोभ्रम, रक्त और स्निग्ध सन्ध्या,
आदि देखकर यह सिद्ध करना कि खूब वर्षा होगी, अनागतकालग्रहण है।
इन तीनों लक्षणों की विपरीत प्रतीति से विपरीत अनुमान किया जा सकता है। सूखे वनों को देखकर कुवृष्टि का, भिक्षा की प्राप्ति न होने पर दुर्भिक्ष का और खाली बादल देखकर वर्षा के अभाव का अनुमान करना विपरीत प्रतीति के उदाहरण हैं। __अनुमान के अवयव-मूल आगमों में अवयव की चर्चा नहीं है। अवयव का अर्थ होता है दूसरों को समझाने के लिए जो अनुमान का प्रयोग किया जाता है उसके हिस्से । किस ढंग से अनुमान का प्रयोग करना चाहिए ? उसके लिए किस ढंग से वाक्यों की संगति बैठानी चाहिए ? अधिक से अधिक कितने वाक्य होने चाहिए ? कम से कम कितने वाक्यों का प्रयोग होना चाहिए ? इत्यादि वातों का विचार अवयव-चर्चा में किया जाता है। प्राचार्य भद्रवाह ने दशवैकालिकनियुक्ति में अवयवों की चर्चा की है। उन्होंने दो से लगाकर दस अवयवों तक के प्रयोग का समर्थन किया है। दस अवयवों को भी उन्होंने दो
१-~'कत्व पंचावयवयं दसहा वा सव्वहा ण पडिकुत्थंति ।
-~-दशवकालिकनियुक्त, ५०