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— जैन-दर्शन
. योगाचार विज्ञानातवाद के नाम से प्रसिद्ध है। विज्ञानात का अर्थ है केवल विज्ञान ही सत् है-तत्त्व है। लंकावतारसूत्र में इस तत्त्व को 'पालयविज्ञान' कहा गया है। यह तत्त्व ग्राह्य-ग्राहक भाव से विनिमुक्त है। बुद्धि से विवेचन करने पर हम इस तत्त्व का कोई भी स्वरूप निश्चित नहीं कर सकते। ऐसी अवस्था में यह तत्त्व अनभिलाप्य एवं निःस्वभाव है। . असंग एवं वसुबन्धु ने इसी तत्त्व को 'विज्ञप्तिमात्रता' कहा है। विज्ञप्तिमात्रता का पूर्ण वर्णन हमारी शक्ति से बाहर है । साधारण बुद्धि इसका वर्णन करने में असमर्थ है।'
विज्ञानाद्वैतवादप्रतिपादित विज्ञप्तिमात्रता या विज्ञान क्षणिक है या नित्य है ? इस प्रश्न का उत्तर दो रूपों में मिलता है। कुछ विद्वान् प्राचीन आचार्यों की कृतियों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं कि योगाचार नित्यवादी है। उनका कथन है कि विज्ञानात में क्षणिकत्व की कल्पना पीछे के तर्कयुग के प्राचार्यों की देन है। कुछ विचारक मूलतः विज्ञानाद्वैत को क्षणिक मानते हैं। वे कहते हैं कि
क्षणिक विज्ञान-परम्परा ही विज्ञानात का मूलभूत सिद्धान्त है। . योगाचार ने कभी भी नित्यवाद को स्वीकृत नहीं किया। वह हमेशा से अनित्यवादी अर्थात् क्षणिकवादी रहा है। जो कुछ भी हो, इतना अवश्य है कि योगाचार केवल विज्ञान को ही अन्तिम तत्त्व मानता है। ____ अद्वैत वेदान्त ब्रह्म को अन्तिम तत्त्व मानता है । यही ब्रह्म आत्मा के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्म और आत्मा दो तत्त्व नहीं हैं, अपितु ब्रह्म ही आत्मा है और आत्मा ही ब्रह्म है। हमारे सीमित ज्ञान का असीम आधार यही तत्त्व है । यद्यपि हम अपने सीमित ज्ञान के आधार पर असीम ब्रह्म का वर्णन नहीं कर सकते, तथापि हमारी बुद्धि को
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१-~-बुद्धया विविच्य....
लंकावतारसूत्र, पृ० ११६ २-विंशतिका, का० २२ । ३ --Indian Philosophy : डा० सी० डी० शर्मा, पृ० १६६