Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 413
________________ જૈન કોસ્મોલોજી (३) प. इमाणं भंते! रयणप्पभा पुढवी कइविधा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - (१) खरकंडे (२) पंकबहुलकंडे (३) आवबहुलकंडे ॥ प. इमीसे णं भंते! रयणप्पभा पुढवीए खरकंडे कतिविधे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! सोलसविधे पण्णत्ते - तं जहा (१) रयणकंडे (२) वइरे (३) वेरुलिए (४) लोहितक्खे (५) मसारगल्ले (६) हंसगब्भे (७) पुलए (८) सोगंधिए (९) जोतिरसे (१०) अंजणे (११) अंजणपुलए (१२) रयते (१३) जातरुवे (१४) अंके (१५) फलिहे (१६) रिट्ठकंडे... । (श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र- पडि. - ३ / उ. १ / सूत्र -६९) (४) प. सक्करपभा णं भंते! पुढवि कतिविधा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! एगागारा पण्णत्ता । एवं जाव अहेसत्तमा... ॥ - (१) सीमंतउत्थ पढमो, बीओ पुण रोरुअ त्ति नायव्वो । भंतो उण त्थ तइओ, चउत्थो होइ उब्भन्तो ॥ २२० ॥ संभतमसंभतो, विब्भत्तो चेव सत्तमो निरओ । अट्ठमओ तत्तो पुण, नवमो सीओत्ति णायव्वो ॥२२१॥ वक्कंतमंडवक्कंतो, विक्कंतो चेव रोरुओ निरओ । पढमाए पुढवीए तेरस निरइंदया एए ॥ २२२ ॥ थणी थए यता, मणए वणए य होइ नायव्वो । घट्टे तह संघट्टे, जिब्भे अवजिब्भए चेव ॥२२३॥ लोले लोलावत्ते, तहेव थणलोलुए य बोद्धव्वे । बीयाए पुढवीए, इक्कारस इंदया एए ॥ २२४ ॥ तत्तो तविओ तवणो, तावणो य पंचमो निदाघो अ । छट्टो पुण पज्जलिओ, उज्जलिओ सत्तमो निरओ ॥२२५॥। संजलिओ अट्ठमओ, संपज्जलिओ य नवमओ भणिओ । तइयाए पुढवीए, एए नव होंति निरइंदा ॥२२६॥ आरे तारे मारे, वच्चे तमए य होइ नायव्वे । खाडखडे य खडखडे, इंदयनिरया चउत्थीए ॥ २२७॥ खाए तमए य तहा, झसे य अंधे अ तह य तमिसे अ । एए पंचम पुढविए, पंच निरइंदया हुंति ॥२२८ ॥ हिमवद्दललल्लके तिन्नि य निरइंदया उछट्टीए । एक्को य सत्तमाए, बोद्धव्वो अप्पइद्वाणो ॥ २२९॥ F (श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र - पडि. - ३ / उ. १ / सूत्र-६९) (१५) साते नरभां रहेला प्रतरोनां नाभो... Jain Education International (बृहत्संग्रहणी-प्रक्षेप गाथा- ४७ थी ५६ ) + (त्रैलोक्यदीपिका - ३५५ थी... ) + (देवेन्द्रनरकेन्द्रप्रकरणम् ) (१) वंतर पुण अट्ठविहा, पिसाय भूया तहा जक्खा... ॥३४॥ रक्ख किन्नर - किंपुरीसा, महोरग अट्ठमा य गंधव्वा । दाहिण उत्तरभेया, सोलस तेसिं (सुं) इमे इंदा ॥३५॥ (१६) व्यंतर तथा वासव्यंतर हेवो... ( श्री बृहत्संग्रहणी ग्रंथम् ) व्यंतराः किन्नरकिंपुरुषमहोरगगांधर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ॥ ( तत्त्वार्थ सूत्र / चतुर्थाध्ययन / सूत्र - १२ ) For Private & Personal Use Only ३६ www.jainelibrary.org

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