Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust
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જૈન કોસ્મોલોજી
(४२) वक्षस्कार पर्वत
(१) चित्ते य बंभकूडे नलिणीकूडे य एगसेले य। तिउडे वेसमणे वा, अंजणे मायंजणे चेव ॥३७३॥ अंकावइ पम्हावइ, आसीविस तह सुहावह चंदे | सुरे नागे देवे, सोलस वक्खारगिरिनामा ||३७४ || (श्री बृहत्क्षेत्र समास / भाग-२)
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जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं सीआए महानईए उभओ कुले अट्ठ वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा - (१) चित्तकुडे (२) पम्हकुडे (३) नलिनकुडे (४) एगसेले (५) तिकुडे (६) वेसमणकुडे (७) अंजणे (८) मायंजणे ॥ - जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीओआए महानईए उभओ कुले अट्ठ वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा – (१) अंकावर (२) पम्हावइ (३) आसीवीसे (४) सुहावइ (५) चन्दपव्वए (६) सुरपव्वए (८) नागपव्वए (९) देवपव्वए ... ॥
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(ठाणांग-८/ सूत्र- ६३७)
महाविघ्ह क्षेत्रमां वनभुजनो हेजाव...
(१) सीयासीओयाणं, उभओ कूलेसु, वणमुहा चउरो । उत्तरदाहिणदीहा, पाईणपईणविच्छिन्ना ||३८७|| (२) पंचसए बाणउए, सोलस य हवंति जोयणसहस्सा । दो य कला अवराओ आयामेणं मुणेयव्वा ॥ ३८९ ॥ (३) जत्थिच्छसि विक्खंभं, सीयाए वणमुहस्स नाउं जे । अउणत्तीससएहिं, बावीसहिएहिं तं गुणि ॥ ३९० ॥ तं चेव पुणो रासिं, अउणावीसाइ संगुणेऊणं । सुन्निदियदुगपंचय एक्कगतिगभागहारो से ||३९१|| भइएण रासिणा तेण एत्थ जं होइ भागलद्धं तु । सो सीयाए वणमुहे, तहिं तहिं होइ विक्खंभो ॥३९२॥ (श्री बृहत्क्षेत्र समास / भाग-२) (४४) हेवडुरु - उत्तरकुरु क्षेत्रो ( डुरुक्षेत्रना १० द्रहो )
(१) सीयासीयोयाणं, बहुमज्झे पंच पंच हरयाओ । उत्तरदाहिणदीहा, पुव्वावरवित्थडा इणमो ॥२७१॥ (२) पढमेऽत्थ नीलवंतो उत्तरकुरुहरय चंदहरओ य । एरावयद्दहो च्चिय, पंचमओ मालवंतो य ॥ २७२॥ निसहद्दह देवकुरु, सूर सुलसे तहेव विज्जुपभे । पउमद्दहसरिसगमा, दहसरिसनामा उ देवित्थ ॥२७३॥ ( श्री बृहत्क्षेत्र समास / भाग-२ ) जावइयम्मि पमाणम्मि, होंति जमगा उ नीलवंता उ । तावइयमन्तरं खलु जमगदहाणं दहाण च ।।
॥ प्रक्षेप गाथा ॥
(३)
પરિશિષ્ટ-૧
(४५) भेरुपर्वत...
(१) किंचायं - मन्दरो मेरुः सुदर्शनः स्वयंप्रभः । मनोरमो गिरिराजो रत्नोच्चयशिलोच्चयौ ॥१॥ लोकमध्य लोकनाभिः सूर्यवतोऽस्तसंज्ञितः । दिगादिसूर्यावरणावतंसकनगोत्तमाः ॥२॥
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