Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 479
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org. hel Gron Q RED FROM VEND GRAN UNDIRON VEND GROW DRKEND ईमानांना | उकललो या विडिमोटारटाए बुकफलों को सगठने दे वि०दिडमवि/ 2/10/ स्तारक २०कोस सासादिवदिन्दीई को को बा डम कढई स डिमनिस्कने २४२ यूडसाद विडिमदीदसि गाउ एनर मदीर्घसा कर भी मारे जिन साद | मा महिनदिसाबा पीस सादा सिरिसमा तम्मासवेश्म ભવી રત નામ ધનવૃત્તિનું બાદીવનોબ | छ न नई देवन मा० तेजंतू मरा त्रिभयति सालि नट्टोंसला टियर में सवार रूपकिरी रिस्तारा निमंत्र में | एउकोमा माकर विप्रक्रोस २४ थुडसादादिको १५ विस्तारकोस ली | २०७/२०१ सजदार ॐ०१ Q कमसोरितिमाविधेरंड जनजालय नश्तोदिमेव ममस्था २०३० तरका नद नई यमदेवाने मनुरबार दारिकाएं नवरं मारिया को १४५ सो०दी को ༢, ༢༠༣། एत सी कोमस एदि विर्विसायास मानदेवताना नन्नदन दस साल सम नवला लंदन संरक्षण 000 000 मोक्ले २ भूवृक्ष... विदेह LEM de fervatar s देस्नरन: यमक बहाली दे नमन रमवानाः 1000000 -- જૈન કોસ્મોલોજી परिशिष्ट - २

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