Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 442
________________ જૈન કોસ્મોલોજી, ....................................................५/२।-१ સૂ.૧ના મૂળપાઠથી તેમજ ટિપ્પણ નં. ૭થી અસુરરાજ ચમરેન્દ્રનાં તિગિચ્છિકૂટ ઉત્પાત પર્વતનું પ્રમાણ અહીં त्रा शाम उद्धृत ४२वामा माछ... Is (प्रथमांश - मूल पाठ थी) जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियमसंखेज दीव-समुद्दे वीईवइत्ता अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लातो वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालिसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थणं चमरस्स असुररण्णो तिगिछिकुडे नाम उप्पायपव्वये पण्णत्ते, सत्तरसएक्कवीसे जोयणसते उड्ढें उच्चतेणं, चत्तारितीसे जोयणसते कोसं च उव्वेहेणं, गोत्थूभरस्स आवासपव्वयस्स पमाणेणं नेयव्वं, नवरं उवरिल्लं पमाणं मज्झे भाणियव्वं... जाव... ॥ us (द्वितीयांश - टिप्पण नं.७ थी...) मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खंभेण, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि सत्ततेवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, मूले तिण्णिजोयणसहस्साई दोण्णि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसुणे परिक्खेवेणं, मज्झे एगं जोयणसहस्सं तिण्णि य इगुयाले जोयणसए किंचिविसेसुणे परिक्खेवेणं, उवरिं दोण्णि य जोयणसहस्साइं दोण्णि य छलसीए जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं... Is (तृतीयांश - मूल पाठ थी...) मूले वित्थडे मज्झे संखित्ते, उप्पि विसाले वरवइरविग्गहिए महामउंदसंठाणं संठिए सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे... ॥ (विवाहपण्णत्तिसुत्तं...) (७४) ज्योतिष्ठ हेवो (१) तत्थ रवि दसजोयण, असीइ तदुवरि ससी य रिक्खेसु । अह भरणि साइ उवरि, बहि मूलोऽभिंतरे अभिई ॥५०॥ तार-रवि-चंद-रिक्खा, बुह सुक्का जीव मंगल सणिया। समसयनउय दस असिइ, चउ चउ कमसो तिया चउसु ॥५१॥ (२) दो ससि दो रवि पढमे, दुगुणा लवणम्मि घायईसंडे । बारस ससि बारस रवि, तप्पभिई निद्दिट्ट ससि रविणो ॥७८॥ तिगुणापुस्विल्लजुया, अणंतराणंतरंमि खित्तम्मि । कालोए बायाला, विसत्तरि पुक्खरद्धम्मि ॥७९॥ (श्री बृहत्संगहणी सूत्रम्) Is ससिरविणो दो चउरो, बार दु चत्ता विसत्तरि अकमा । जंबुलवणाईसु पंचसु गणेसु नायव्वा... ॥२॥ (मंडल प्रकरणम्) (७६) तभरसायनुं सामान्यथी विवेयन... (१) एवं महीयसि तमस्कायेऽथाब्दाः सविद्युतः ॥१८०॥ प्रादुर्भवन्ति वर्षन्ति, गर्जन्ति विद्युतोऽपि च । द्योतन्ते विलसद्देवासुरनागविनिर्मिताः ॥१८१॥ (श्री क्षेत्रलोकप्रकाश/सर्ग-२७) 360 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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