Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust
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જૈન કોસ્મોલોજી
............... परिशिष्टएत्थ णं चत्तारि अन्तरदीवा पण्णत्ता, तं जहा – धणदन्तदीवे, लट्ठदंतदीवे, गुढदन्तदीवे, सुद्धदंतदीवे । तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा - धणदंता, लट्ठदंता, गुढदंता सुद्धदंता...। जंबुद्दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेण सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुदं तिन्नि तिन्नि जोयणसयाई ओगाहेत्ता णं चत्तारि अंतरदीवा पण्णत्ता, तं जहा - एगुरुयदीवे, सेसं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव सुद्धदंता... ।
(श्री ठाणांग सूत्र-४/ उ. २ / सूत्र-३०१) (१) चुल्लहिमवंत पुव्वावरेण विदिसासु सागरं तिसए । गंतूणंतरदीवा, तिन्नि सए होंति विच्छिन्ना ॥५५(४५३)।। (२) अउणापन्न नवसए किंचुणे पिरिहि तेसिमे नामा। एगोरुय आभासिय, वेसाणा चेव लंगुलो ॥५६(४५४)। (३) एएसि दीवाणं, परओ चत्तारि जोयण सयाई । ओगाहिऊणं लवणं, सपडिदिसि चउसयपमाणा ॥५७(४५७)।। चत्तारंतरदीवा हयगयगोकन्नसक्कुलीकन्ना । एवं पंचसयाई, छत्तस्स य अट्ठ नव चेव ।।५८(४५६)। ओगाहिऊण लवणं विक्खंभोगाहसरिसया भणिया । चउरो चउरो दीवा, इमेहि नामेहि नायव्वा ॥५९(४५७)।। (४) आयंसमिंढगमुहा, अओमुहा गोमुहा य चउरो य । आसमुहा हत्थिमुहा सीहमुहा चेव वग्धमुहा ॥६०(४५८)।। तत्तोय आसकन्ना, हरिकन्ना कन्नकन्नपाउरणा । उक्कमुहा मेंहमुहा, विज्जमुहा विज्जुदंता य ॥६१(४५९)। धणदंत लट्ठदंत, निगुढदंता य सुद्धदंता य । वासहरे सिहरम्मि वि, एवं चिय अट्ठवीसा वि ॥६२(४६०)॥ (५) तिन्नेव होंति आई, एकुत्तरवड्डिया नव सयाओ । ओगाहिऊण लवणं, तावइयं चेव विच्छिन्ना ॥६३(४६१)। (६) पढमचउक्कपरिरया, बीयचउक्कस्स परिरओ अहिओ । सोलसहिएहिं तिहिं, जोयणसएहिं (एमेव) सेसाणं ॥६४(४६२)। (७) एगोरुय परिक्खेवो, नव चेव सयाइ अउणपन्नाइं । बारसपन्नट्ठाइं हयकन्नाणं परिक्खेवो ॥६५(४६३)। पन्नरसिक्कासीया आयंसमुहाणं परिरओ होइ । अट्ठारसत्तणउया, आसमुहाणं परिक्खेवो ॥६६(४६४)॥ बावीसं तेराइं परिक्खेवो होइ आसकन्नाणं । पणवीस अउणतीसा, उक्कमुहाणं परिक्खेवो ॥६७(४६४)। दो चेव सहस्साई, अद्वेव सया हवंति पणयाला । धणदंतगदीवाणं, परिक्खेवो होइ बोद्धव्वो ॥६८(४६६)।। (८) जावइय दक्खिणाओ, उत्तरपासे विवत्तिया चेव । चुल्लसिहरम्मि लवणे, विदिसासु अओ परं नत्थि ॥७२(४७०)। (९) अंतरदीवेसु नरा, धणुसय अठ्ठस्सिया सया मुइया । पालंति मिहुणधम्मं, पल्लस्स असंखभागाऊ ॥७३(४७१)। चउसट्ठी पिट्ठकरं डयाणं मणुयाणं तेसिमाहारो। भत्तस्स चउत्थस्स य, उणसीइ दिणाणि पालणया ॥७४(४७२)॥
(श्री बृहत्क्षेत्रसमास/भाग-२)
(५४) अढीद्वीप (१) अभितरओ दीवो-दहीण पडिपुन्नचंदसंठाणे । जंबुद्दीवो लक्खं विक्खंभायामओ होइ ॥६५४।। जं पुण लवणसमुद्दो, परिखिवई दुगुणलक्खविक्खंभो । तं पुण धायइसंडो, तं दुगुणं तं च कालोओ ॥६५५।। सो पुण पुक्खरदीवेण वेढिओ पुव्वदुगुणमाणेणं । इय दुगुणदुगुणमाणा, सव्वे दीवा समुद्दा य ॥६५६।।
(चैत्यवंदन महाभास-६५४/५५/५६)
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