Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust
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જૈન કોસ્મોલોજી
પરિશિષ્ટ-૧
(५६) भानुषोत्तर पर्वत... (१) पुक्खरवरदीवेणं, वलयागिइसंठिएणं कालोओ। परिवेढिउं संमंता सोलस लक्खा य पिहुलो सो ॥१(५८१)॥ (२) एयस्स मज्झयारे, नामेणं माणुसोत्तरो सेलो । जगई व जंबूद्दीवं, वेढेत्तु ठिओ मणुयलोयं ॥२(५८२)॥ (३) सत्तरस जोयण-सए इगवीसे सो समुसिओ रम्मो । तीसे चत्तारि सए, कोसं च अहो समोगाढं ॥३(५८३)। (४) मूले दस बावीसे, रुंदो मज्झम्मि सत्त तेवीसे । उवरिम चत्तारि सए, चउवीसे होइ विच्छिन्नो ॥४(५८४)।। (५) एगा जोयणकोडी, लक्खा बायाल तीस य सहस्सा । दो य सर अउणपन्ना, अभितरपरिरओ तस्स ॥५(५८५)।। (६) एगा जोयणकोडी, छत्तीससहस्स लक्ख बावाला। तेरसहिय सत्तसया, बाहिरपरिही गिरिवरस्स ॥६(५८६)।। (७) जंबूनयामओ सो, रम्मो अद्धजवसंठिओ भणिओ। सीहनिसाई जेणं, दुहा कओ पुक्खरद्दीवो ॥७(५८७)।
(श्री बृहत्क्षेत्र समास/भाग-२) (५८) त्राशे लोभा रहे शाश्वता प्रासाघाटिनुं यंत्र... तत्थ किर उड्डलोए, चउरासी चेइयाण लक्खाई । सत्ताणउइसहस्सा, तह तेवीसं विमाणा उ॥६४४।। सत्तेव य कोडीओ, हवंति बावत्तरी सयसहस्सा । अहलोए सासयचेइयाण, नेया इमा संखा ॥६४५।। जिणभवणाई तिरियं, संखाईयाइं भोमनयरेसु । जोइसियविमाणेसु य, तत्तो वि हु संखगुणियाई ॥६४६।। वासहर-मेरु-वक्खार-दहवइ-माणुसुत्तरनगेसु । नंदीसर-कुंडल-रुयग-वट्टवेयड्ढमाईसु ॥६४७॥ पंचदसकम्मभूमिसु, सासयकित्तिमयभेयभिन्नाई । अरहंतचेइयाई, तिरियलोगम्मि तेसिमिहं... ॥६४८ ।।
(चैत्यवंदन महाभाष्य-६४४ थी ६४८) (६१) मा सवसर्घािशीठाणना १२ यवर्ती, ८ वासुदेव, ८ अणवाहि (१) भरहो सगरो मघवं, सणंकुमारो य रायसढुलो । संती कुंथु य अरो हवइ सुभूमो य कोरव्वो ।। नवमो य महापउमो, हरिसेणो चेव राससढुलो । जयनामो य नरवती बारसमो य बंभदत्तो य॥
(समवायांग सूत्र/गाथा १२२/१२३) + (तित्थोगाली पयन्ना-५७०/५७१/)
+ (प्रवचनसारोद्धार-१,२०९) + (रत्नसंचय-५२) + (विचारसार-५४१)
+ (सप्ततिशतकस्थानप्रकरणम् - ३४८) + (शतपञ्चाशितिका संग्रहणी-१०२) (२) अटेव गया मोक्खं सुहुमो बंभो य सत्तमि पुढवि । मधवं सणंकुमारो, सणंकुमारं गया कप्पं ॥
(विचारसार-५६१) + (रत्नसंचय-५७) + (गाथासहस्त्री-३९७) + (तित्थोगाली पयन्ना-५७४) (३) उसभे भरहो, अजिए सगरो, मघवं सणंकुमारो य । धम्मस्स य संतीस्स य जिणंतरे चक्कवट्ठीदुमं ॥५७२।। संतिकुंथु य अरो, अरहंता चेव चक्कवट्टी य । अरमल्लिअंतरम्मि उं, हवइ सुभूमो य कोरव्वो ॥५७३|| मुणिसुव्वय महपउमो, नमिम्मि हरिसेण होइ बोधव्वो । नमि नेमि अंतरा जतो, अरिट्ठ पासंतरे बंभो ॥५७३।।
__ (गाथासहस्त्री-३९४ से ३९६) + (तित्थोगाली पयन्ना-५७२ से ५७४) (3EH
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