Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 420
________________ हैन ओस्मोतो ............. ..-..-..-..-..-..-..-..-.....पारशष्ट-१ तं तिगुणं सविसेसं, परिही से कोसमेगबाहल्लं । मज्झम्मि तीइ भवणं, कोसायामद्धविच्छिन्नं ॥२०१॥ देसुणकोसमुच्चं, दारा से तिदिसि धणुसए पंच । उव्विद्धा तस्सद्धं, विच्छिन्ना तत्तियपवेसे ॥२०२।। भवणस्स तस्स मज्झे, सिरिए देवीए दिव्वसयणिज्जं । मणिपीढियाइ उवरिं, अड्डाइयधणुस उच्चाए ॥२०३॥ (२) तं पउमं अन्नेणं, तत्तो अद्धप्पमाणमित्ताणं । आवेढियं समंता, पउमाणट्ठस्सएणं तु ॥२०४॥ (३) सिरिसामन्नसुराणं, चउण्डं साहस्सिणं सहस्साइं । चत्तारि पंकयाणं, वायव्वीझाणुईणेणं ॥२०५।। मयहरियाण चउण्हं सिरिए पउमस्स तस्स पुव्वेणं । महुयरिगणोवगीया, चउरो पउमा मणोभिरामा ॥२०६।। अट्ठण्ह सहस्साणं, देवाणभितराए परिसाए । दाहिणपुरस्थिमेणं, अट्ठसहस्साइ पउमाण ॥२०७॥ पउमस्स दाहिणेणं, मज्झिमपरिसाए दससहस्साणं । दस पउमसहस्साई, सिरीदेवीए सुरवराणं ।।२०८ ॥ बारस पउमसहस्सा, दक्षिणपच्चत्थिमेण पउमस्स । परिसाए बाहिराए, दुवालसण्हं सहस्साणं ॥२०९।। अरविंदस्स वरेणं, सत्तण्हाणियाहिवाण देवाणं । वियसियसहस्सपत्ताणि सत्त पउमाणि देवीए ॥२१०॥ (४) चाउद्दिसि पि पउमस्स, तस्स सिरिदेवीआरक्खयाणं । सोलसपउमसहस्सा, तिन्नि य अन्ने परिक्खेवा ॥२११॥ (५) बत्तीस सयसहस्सा पउमाणब्भितरे परिक्खेवे । चत्तालीसं लक्खा, मज्झिमए परिरए होंति ॥२१२।। अडयालिसं लक्खा, बाहिरए परिरयम्मि पउमाणं । एवमेसि पउमाणं कोडी वीसं व लक्खाई ॥२१३॥ (श्री बृहत्क्षेत्रसमास / भाग-१) (39) सुदीपभां आवेला पर्वतोमुं यंत्र... (१) प. (१) जंबूद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वासहरा पव्वया पण्णत्ता ? (२) केवइया मंदरा पव्वया पण्णत्ता ? (३) केवइया चित्तकुडा ? (४) केवइया विचित्तकुडा (५) केवइया जमगपव्वया ? (६) केवइया कंचणगपव्वया? (७) केवइया वक्खारा ? (८) केवइया दीहवेयड्डा ? (९) केवइया वट्टवेयड्ढा पण्णत्ता? ... उ. (१) गोयमा ! जंबूद्दीवे दीवे छ वासहर पव्वया पण्णत्ता । (२) एगे मंदरे पव्वए । (३) एगे चित्तकुडे (४) एगे विचित्तकुडे (५) दो जमगपव्वया (६) दो कंचणगपव्वयसया (७) वीसं वक्खारपव्वया (८) चोत्तीसं दीहवेयड्डा (९) चत्तारि वट्टवेयड्ढा पण्णत्ता । एवामेव सपुव्वावरेणं जंबूद्दीवे दीवे दुण्णि अउणत्तरा पव्वयसया भवंतीतिमक्खायंति... ॥ (श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति/वक्ष-१/सूत्र-१२५) (33) लरतक्षेत्रना भध्यजंऽनी विशेष काराहारी... (१) तं जहा - रायगिह मगह चंपा अंगा तह तामलित्ति वंगा य । कंचणपुर कलिंगा वाराणसी चेवे कासी य ॥१०८ ।। साएय कोसला गयपुर च कुरु सोरियं कुसट्ठा य । कंपिल्लं पंचाला अहिच्छत्ता जंगला चेव ॥१०९॥ बारवई सोरट्ठा मिहिल विदेहा य वच्छ कोसंबी । नंदिपुरं संडिल्ला, भद्दिलपुरमेव मलया य ।।११०॥ (394 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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