Book Title: Jain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Author(s): Charitraratnavijay
Publisher: Jingun Aradhak Trust
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જૈન કોસ્મોલોજી
પરિશિષ્ટ-૧
(२)
घम्मा वंसा सेला, अंजण रिट्ठा मघा य माघवती । नामेहिं पुढविओ, छत्ताइच्छत्तसंठाणा ॥ २११ ॥
(बृहत्संग्रहणी ग्रंथ )
(३)
असइ बत्तीस अडवीस-बीस - अट्ठार - सोल अड सहसा । लक्खुवरि पुढवीपिंडो, घणुदहिघनवायतनुवाया ॥ २१२ ॥ गयणं च पइट्ठाणं, वीससहस्साइं घणुदहिपिंडो । घणतणुवायागासा, असंखजोयणजुआपिंडे... ॥२१३॥
(बृहत्संग्रहणी ग्रंथ )
आसीतं बत्तीसं अट्ठावीसं च होइ वीसं च । अट्ठारस सोलसगं अट्ठत्तरमेव हिट्ठिमया ॥१॥ अडहुत्तरं च तीसं, छव्वीसं चेव सतसहस्सं तु । अट्ठारस सोलसगं चोद्दसमहियं तु छट्टिए ॥२॥ अद्धतिवण्णसहस्सा उवरिमऽहे वज्जिऊणतो भाणियं । मज्झे उतिसु सहस्सेसु, होंति नरगा तमतमाए ||३|| ( श्री प्रज्ञापना सूत्र पद - २ / सूत्र - १३४ )
(४) रयणाए बलयाणं छघपंचमजोणं सङ्कं ॥ २१४॥
विक्खंभो घणउदहि-घणतणुवायाण होइ जह संखं । सातिभाग गाउअं, गाउअं च तह गाउअतिभागो ॥ २१५ ॥ पढममहीवलयेसुं खिवेज्ज एअं कमेण बीआए । दुति चउ पंचच्छगुणं, तइआइसु तंपि खिव कमसो ॥२१६॥ (५) तीस - पणवीस - पनरस-दस - तिन्नि पणूण एग लक्खाई। पंच य नरया कमसो, चुलसी लक्खाई सत्तसुवि॥२१८॥
( श्री बृहत्संग्रहणी ग्रंथ )
呀 प. इमीसे णं भंते । रयणप्पभाए पुढविए केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! तीसं णीरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, एवं एएणं अभिलावेणं सव्वासि पुच्छा इमा गाहा अणुगंतव्वा
तीसा य पण्णवीसा पण्णरस दसेव तिण्णि य हवंति । पंचुणसयसहस्सं, पंचेव अणुत्तरा नरगा* (श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र / पडि. ३ / उ. १ / सूत्र- ७)
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(समवायांग सूत्र / सूत्र - १३९ - ( २ ) + ( भगवती सूत्र / श. १ / उ. ५ / सूत्र - १-२ ) + (पण्णवणा सूत्र / पद - २ / सूत्र- १३७) (२४) भंजूद्वीप
(१)
प. किमाकारभावपडोयारा णं भंते! दीव समुद्दा पण्णत्ता ?
उ. तत्थ णं अयं जंबूद्वीवे णामं दीवे दीव-समुद्दाणं अभितरिए सव्वखुड्डाए । वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुन्नसंठाणसंठिए, * एक्कं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, *तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं, दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए, तिण्णि य कोसे, अट्ठावीसं च घणुसयं, तेरस अंगुलाई, अद्धंगुलकं च किंचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते..... ।।
(श्री जीवाजीवाभिगमसूत्र पडि. ३ /उ.१ / सूत्र - १२३ / १२४) * (१) (समवायांग सूत्र / १ / ( ४ )) (२) (समवायांग सूत्र / सूत्र - १२४ ) (१) (ठाणांग सूत्र / अध्य. १ / सूत्र - ४४ ) (२) (भगवती सूत्र - श. ९ /उ. १ / सूत्र- २/३ ) + (३) (जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र / वक्ष - १ / सूत्र - ३)
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