Book Title: Hirde me Prabhu Aap
Author(s): Jayant Modh
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 159
________________ तत्त्व को श्रीमद् राजचंद्र से ग्रहण किया । आज भी श्री आत्मानंदजी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं । आजके भौतिक जीवन में जो पापारंभ विशेष रूप से हो रहा है, उसके बारे में ये अच्छा मार्गदर्शन दे रहे हैं । ये थोडे से लोगों के नसीब में होता है, जो गरजन के द्वारा प्राप्त ज्ञान को समझते हैं और उस पर चलने का संकल्प करते हैं । इस दिशा में श्री आत्मानंदजी के द्वारा जो कार्य हो रहा है वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, और सिर्फ आमजनता के लिए ही नहीं, पर साधु के लिए भी अनुकरणीय है। उनके द्वारा हुआ यह कार्य बहुत प्रेरणादायी एवं अनुमोदनीय है। स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी (श्रवणबेलगोला, कर्णाटक) श्रीमद् राजचंद्र आध्यात्मिक साधना केन्द्र, कोबा (जि. गांधीनगर, गुजरात) के संस्थापक श्री आत्मानंदजी की ७५ वी जयंती के कार्यक्रम की पूर्णाहुति दिसंबर १-२-३, २००६ को मनाई जा रही है। आप जीवन में धर्म को उतारकर दूसरों को भी उस मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रहे हैं । निरंतर स्वाध्याय, चिंतन, मनन, ज्ञानसाधना करते हुए अनेक पुस्तकों की रचना भी की है। श्री आत्मसिद्धिशास्त्र के निगूढ रहस्यों का, स्वानुभूति के साथ, उपदेश दे रहे हैं और प्रचार-प्रसार कर रहे हैं । आप ग्रंथालय, ध्यान केन्द्र, गुरुकुल आदि शैक्षणिक कार्य का भी यशस्वितापूर्वक संचालन कर रहे हैं । जिनवाणी-सरस्वती के वरप्रसाद आप पर सदा रहते हैं। आप अध्यात्म के यशस्वी प्रवचनकार भी है। सब का मंगल चाहनेवाले आप, अध्यात्म के बल से कैवल्यमार्ग की ओर सदा अग्रसर रहें, यही मंगल मनीषा है। અધ્યાત્મયોગિની પૂ. લલિતબાઈ મહાસતીજી (स्यतर अध्यात्मन्द्र, भीमाम,8.45६२१) શ્રી આત્માનંદજીનું જીવન એક ઉત્તમ આદર્શ છે. અધ્યાત્મ સાથે સેવાનો સુભગ સમન્વય આપની પળપળની પ્રવૃત્તિમાં ઊભરે છે, અંતરમાં પ્રભુસ્મરણ - બહાર સેવાકાર્ય, અંતરંગ અસંગ દશા - બહાર બહુજનસમુદાય વચ્ચે, અંતર આત્મગુણોમાં સ્થિર – બહાર પરોપકારમયી ગતિશીલતા.... આવી સમતુલા એ જ છે સાધનાનો 15२ पायो. આ પાયો નાંખી, આપશ્રીએ સાધનાની એક ભવ્ય ઇમારત સર્જી છે, એ સાધનાબીજને ભોમાં ભંડારી એક વિશાળ વટવૃક્ષ વિસ્તાર્યું છે; જે અનેક જીવો માટે આશ્રયસ્થાન છે. આવી આંતરદશા આપશ્રીની આત્મિક શક્તિના સ્કુરણ સાથે અન્ય પથિકોનો માર્ગ પ્રશસ્ત કરી રહી છે. पस, ४॥ २॥ पो मने भगवान महावीरन। भागने २४वागत....... विल्यपहने पाभो. પૂ. સ્વામી શ્રી અધ્યાત્માનંદજી (श्री शिवानंहमाश्रम, अमहावाह) આપણી ભારતીય પરંપરામાં કહેલા ગુરુતત્ત્વનું દર્શન આપણે આદરણીય શ્રી આત્માનંદજીમાં કરી શકીએ छी. સમાદરણીય શ્રી આત્માનંદજીને આત્મહત્ત્વનો જ આનંદ છે. “બ્રહ્માનંદં પરમ સુખદં કેવલં જ્ઞાનમૂર્તિનું Fooruse chy

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