Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 40
________________ २२ अशठता गुरुवाणी-२ उस अल्प समय में भी बहुत सारे अच्छे काम किए। दुनिया आज भी उनको याद करती है। माता के खून की एक बूंद भी संतान के हित में रंगी हुई होती है। माँ देखती है आते हुए और पत्नी देखती है लाते हुए .... लड़का कहीं भी बाहर गया हो किन्तु माँ उसकी प्रतीक्षा करती रहती है। वह राजी-खुशी घर पहुँच जाता है उससे माँ को आनन्द होता है। जबकि पत्नी उसको बाहर से आते देखकर पूछ बैठती है - मेरे लिए क्या लाए हो! हाथ में कोई पैकिट है या नहीं? इसी में ही औरत की नजर भटकती रहती है। आज की युवा पीढ़ी तो हम दो हमारे दो, तीसरे की अपेक्षा भी नहीं, पालन भी नहीं कर सकते। लड़का सत्तर वर्ष का हो जाए तब भी माँ की दृष्टि में वह छोटा बालक ही रहता है। यही कारण है कि वह कभी किसी कार्य से बाहर जाता है तो माँ कहती है - बेटा! ध्यान से जाना, साधनों का ध्यान रखना आदि। जिस प्रकार छोटे बालक को शिक्षा दी जाती है उसी प्रकार सत्तर वर्ष के वृद्ध को भी माँ इसी प्रकार की सीख देती है। माँ के वात्सल्य के सामने दुनिया की कोई भी वस्तु नहीं टिक सकती, किन्तु यह शिक्षा आज के युवकों को बेवकूफी भरी लगती है। आज के वृद्धों के श्वासोच्छास में कहीं भी शान्ति नहीं दिखाई पड़ती है। मिया-बीबी केवल दो ही हो तब भी खटपट तो चलती ही रहती है। वह बुढ़िया डोकरी आचार्य महाराज के समक्ष अपनी अन्तर्वेदना को प्रकट करती हुई कहती है - महाराज! यह लड़का कभी भी मुझे माँ कहकर नहीं पुकारता और पोते भी बात-बात में मेरी मजाक उड़ाते हैं। जिस घर में इस प्रकार माँ-बाप तिरस्कृत होते हों उस घर में भगवान् की पधरामणी से क्या लाभ है? आचार्य महाराज बहुत ही गम्भीर और उदार प्रकृति के थे। उन्होंने उस वृद्धा माँ से प्रेम से कहा - माजी! अब आप घर पधारिए, मै अपने ढंग से आपकी वेदना को दूर कर दूंगा। तत्काल ही आचार्य महाराज ने समस्त साधुओं को आज्ञा प्रदान की - चलने की

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