Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 114
________________ गणधरवाद गुरुवाणी-२ भाव से रहे। इसी प्रकार प्रत्येक ब्राह्मण भगवान् के समीप आते हैं और भगवान् उनके संशय को दूर करते हैं । इस प्रकार ११ गणधर भगवान् के चरणों में अपना सिर रखते हैं। उसके बाद उप्पन्ने इ वा, विगए इवा, धुवे इ वा, अर्थात् प्रत्येक पदार्थ उत्पन्न होता है, जो पूर्व पर्याय के रुप में नष्ट होता है और मूल द्रव्य के रूप में नित्य रहता है। इस प्रकार भगवान् के मुख से त्रिपदी सुनकर गौतमस्वामी आदि गणधर द्वादशांगी की रचना करते हैं । ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये त्रिमूर्ति क्या है? ब्रह्मा उत्पत्ति का स्थान है, विष्णु स्थिरता का प्रतीक है और महेश विनाश का प्रतीक है। एक राजा था। उसके एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री के खेलने के लिए राजा ने सोने का छोटा घड़ा बनवा दिया। एक बार राजपुत्र ने उसे देखा तो उसने उस घड़े को गलाकर मुकुट बनवा लिया। पुत्री रोती-रोती राजा के पास आई और लड़का हँसता हुआ आया। दोनों की बात सुनकर राजा मध्यस्थ भाव हो सभा में बैठा हुआ विचार करता है - भले ही घड़े में से मुकुट बनाया हो किन्तु सोना रहा तो घर में ही न! मुकुट की उत्पत्ति हुई और घड़े का नाश हुआ फिर भी सोना तो स्थिर ही रहा। किसी भी पदार्थ के ये तीन स्वरूप होते हैं। भगवान् महावीर के निकट समय में होने वाले दस पूर्वधरों द्वारा लिखित ग्रन्थ आगम के रूप में माने जाते हैं। पहले ऐसा कहा जाता था कि ८४ आगम थे किन्तु आज ४५ आगम ही विद्यमान हैं।

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