Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 138
________________ १२० गुरुवाणी-२ करना चाहता हूँ। तुम्हारा लड़का घर संभालने योग्य हो जाए तो तुम दीक्षा लेने का विचार करते हो क्या? नहीं। तुम तो पुत्र-पौत्र मोह में आकर्षित होते जाते हो। तिरस्कार सहन करके भी सम्मानजनक साधु-जीवन स्वीकार करने की इच्छा नहीं करते। रानी भी वन में साथ जाने के लिए तैयार होती है। पुत्र को बुलाकर बात करते हैं, पुत्र भी जैसा नाम था वैसा ही गुण वाला था। माता-पिता को कहता है - आप इस राज्य का त्याग किसलिए कर रहे हैं? माता कहती है – पुत्र! मरते दम तक यदि राज्य वैभव का त्याग नहीं किया जाए तो अन्त में नरक में जाना पड़ता है। राज्य चलाने में और उसको स्थिर रखने में अनेक पाप बाँधने पड़ते हैं। उन समस्त पापों का नाश करने के लिए राज्य छोड़कर, तापस बनकर फलादि खाकर गुजारा करने से पापारम्भ रुक जाता है और प्रभु का ध्यान धरने से प्रभु के अनुरूप बन जाते हैं । तेरे पिता का नाम जितशत्रु है। नाम के अनुरूप ही उन्होंने समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर राज्य का विस्तार किया है किन्तु अन्तर में रहे हुए छः शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना शेष है। वे छः शत्रु हैं - क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, और ममता। इन पर विजय प्राप्त करने के लिए राज्य छोड़ना आवश्यक है। राजकुमार कहता है - जो राज्य दुर्गति में ले जाने वाला हो वह आप मुझे क्यों सौंपते हो? मैं भी आपके साथ ही आऊँगा। आप कभी अपने पुत्र को हित की बात समझाते हैं ! अरे, पुत्र धर्म कार्य के लिए तैयार होता हो तब भी हम उसे उल्टा-सीधा समझाकर धर्म से विमुख बना देते हैं। साधु के संसर्ग में रहने ही नहीं देते। जो माता-पिता संतान के वास्तविक हितचिन्तक है वे स्वयं के संतानों को संसार में जोड़ने से पहले संसार के भयानक स्वरूप को समझाते हैं। कृष्ण महाराज अपनी पुत्रियों को संसार में प्रवेश करने से पूर्व पूछते थे - तुम्हें रानी बनना है या दासी? रानी बनना हो तो जाओ भगवान् नेमिनाथ के पास और यदि दासी बनना है तथा संसार के सुखों-दुःखों को झेलना है तो विवाह के लिए तैयार हो

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