Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 112
________________ १४ गणधरवाद गुरुवाणी-२ करना पड़ता है, उसी प्रकार शरीर में आत्मा है यह अनुमान से कह सकते हैं। भगवान् ने पहले प्रत्यक्ष द्वारा न समझाकर अनुमान से समझाया और अब प्रत्यक्ष प्रमाण से समझाते हैं। प्रत्यक्ष से आत्मा है .... कोई भी वस्तु को प्रत्यक्ष सिद्ध करने के लिए इन्द्रियाँ ही काम आती हैं। शब्द को प्रत्यक्ष करना हो तो कान कार्य में आएगा। रूप को प्रत्यक्ष करना हो तो आँख का उपयोग होगा। गन्ध को प्रत्यक्ष करना हो तो नाक काम में आएगी। रस को प्रत्यक्ष करना हो तो जीभ का प्रयोग करना पड़ेगा। ठण्डा या गर्म, कोमल या खुरदरा ये जानना हो तो स्पर्श इन्द्रिय का कार्य होगा। ये पाँचों इन्द्रियाँ बाह्यकरण कहलाती हैं और छठी इन्द्रिय मन को अन्तःकरण कहा जाता है। अन्तःकरण से आत्मा को जान सकते हैं । मैं सुखी हूँ, अथवा दुःखी हूँ इसका निर्णय कौन करता है? मन ही करता है। आत्मा मन द्वारा प्रत्यक्ष होती है। मैं हूँ यह बोलने वाला कौन है? आत्मा ही है। जब शरीर में से आत्मा निकल जाती है तो निर्जीव शरीर बोलता है क्या - मैं हूँ? तृण के स्पर्श मात्र से ही चिल्लाने वाला मनुष्य का जब अग्नि दहन किया जाता है तब वह कुछ बोलता है क्या? नहीं। क्योंकि आत्मा उसमें से चली जाती है। प्रत्येक वस्तु स्वयं के गुण धर्म के द्वारा प्रत्यक्ष होती है। ज्ञान यह आत्मा का गुण है और इसके द्वारा वह प्रत्यक्ष होती है। आत्मा के सुख-दुःख, ज्ञान ये सभी गुण हैं । हम सभी प्रयत्न करते हैं पुद्गल की सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए, किन्तु हमें आत्मा के जो ज्ञानादि सद्गुण है, उनको प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। हमको पाँचों इन्द्रियों के विषयों में बहुत आनन्द मिलता है । जड़ और चेतन दो पदार्थ हैं, किन्तु आज के युग में चारों तरफ जड़ की ही वाहवाही हो रही है। चेतन भी जड़ में मिल गया है। इन्द्रियों द्वारा जो अनुभव होता है वह प्रत्यक्ष कहलाता है। चीनी में मधुरता आँखों से नहीं दिखाई देती किन्तु अनुभूति से होती है। समस्त इन्द्रियों पर मन का प्रभुत्व

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