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गुरुवाणी - २
गणधरवाद
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को हम इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करते हैं पकड़ते है । जिस प्रकार तपेली को संडासी के द्वारा पकड़ा जाता है । इन्द्रियाँ संडासी है और विषय यह तपेली/बर्तन है । जो इन्द्रियाँ संडासी है तो उसको पकड़ने वाला भी कोई होगा न? वह है आत्मा । भोजन वस्त्र आदि भोग्य है किन्तु उसका खाने वाला, पहनने वाला कोई होना चाहिए न? घर बनाते है तो उस घर में रहने वाला कोई होना चाहिए या नहीं? उसी प्रकार यह देह घर है। इस घर में रहने वाला कोई होना चाहिए न? वह है आत्मा । शरीर, यह आत्मा के रहने का घर है । इन्द्रियाँ खिड़कियाँ हैं । भीतर रहने वाला कोई दूसरा ही है। खिड़कियाँ और दरवाजों से देखा हुआ पदार्थ दरवाजा बन्द होने पर भी स्मृति से ध्यान में आता है । इसीलिए कह सकते हैं कि शरीर से आत्मा पृथक् है । शरीर ही आत्मा होती तो बाल्यावस्था में जो अनुभव किया है, वही अनुभव बड़े होने पर भी कैसे याद रहता ? क्योंकि बारह वर्ष के बाद शरीर का खून इत्यादि सब कुछ बदल जाता है, ऐसा विज्ञान कहता है, इससे बाल्यावस्था में हुए अनुभव सब भूल जाते किन्तु नहीं, सब कुछ याद रहता है । वह याद रखने वाला कौन है? यदि शरीर ने आत्मा का अनुभव किया होता तो वह शरीर तो बदल गया । इस प्रकार आत्मा ही शरीर नहीं है ।
तब
जब समस्त चेतनाएं मूढ बन जाती है । अचेतन बन जाती है, 1 इस देह को जला दिया जाता है । अन्दर कोई विद्यमान होगा इसीलिए अभी तक इस शरीर को जलाया नहीं गया । अनेक उदाहरण देकर भगवान् ने आत्मा का अस्तित्व इन्द्रभूति गौतम को समझाया। दूध के कण में क्या घी दिखाई देता है? तिल में तेल दिखाई देता है? लकड़ी में आग दिखाई देती है ? पुष्प में सुगन्ध दिखाई देती है? चन्द्रकान्तमणि का चन्द्र . के साथ जब सम्पर्क होता है तो मणि में से पानी झरने लगता है। वैसे तो मणि कठोर होती है उसमें कहीं पानी दिखाई देता है? फिर भी दूध में घी, तिल में तेल, फल में सुगन्ध, मणि में पानी है यह अनुमानत: स्वीकार