Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 52
________________ ३४ पर्युषणा-प्रथम दिन गुरुवाणी-२ आचार्य महाराज पर वारन्ट निकाल दिया। आचार्य महाराज तत्काल ही उसी रात पाटण से निकलकर उबड़-खाबड़ रास्ते पर चल देते हैं। मार्ग में किसी साधु को सांप डंसता है। साधु एकदम चिल्लाकर कहता है - गुरुदेव! सांप ने काट लिया। आचार्य महाराज के पास आकर उनका चरणस्पर्श करता है। उसी समय आचार्य कहते हैं - चलो! खड़े हो जाओ! चलना प्रारम्भ करो। आचार्य के स्पर्श मात्र से सर्प का जहर उतर जाता है। ऐसे प्रखर त्यागी और तपस्वी थे। खड़े-खड़े प्रतिदिन ५०० लोगस्स का काउसग्ग करते थे। गुरुभक्ति.... ___ एक समय चौमासे के लिए गांधार की ओर विहार कर रहे थे। गांधार के श्रावकों को सूचना मिली। खबर देने वाले मनुष्य की ओर सेठ ने चाबी का गुच्छा फेंका और कहा - इन चाबियों में से जो तुझे अच्छी लगे वह ले ले। वह जिस कमरे की चाबी होगी और उस कमरे में जो कुछ होगा वह तेरा होगा। खबरनवीस ने बड़ी चाबी ली और गोदाम खोला तो वह गोदाम रस्सियों का निकला। वह रस्सियाँ भी लाखों की कीमत की थी। गांधार के ऐसे भक्त और उदार श्रावक थे। आचार्य भगवन् गांधार में संघ को आराधना करवा रहे थे। इस तरफ दिल्ली के सिंहासन पर अकबर बादशाह का राज्य था। वह बहुत ही क्रूर एवं हिंसक था। उसको खाने में प्रतिदिन ५०० चिड़ियाओं के जीभ की चटनी लगती थी। वह भयंकर क्रूर परिणामी और खूनी था। ऐसे अकबर को ढलती उम्र में धर्म सुनने की जिज्ञासा जाग्रत हुई। वह अपनी राजसभा में प्रतिदिन नये-नये गुरुओं को बुलाता और धर्म-श्रवण करता। एक दिन वह राजसभा में बैठा हुआ है। चम्पा श्राविका .... इस ओर चम्पा नाम की श्राविका ने छ: महीने का उपवास किया था। ऐसी आदर्श तपस्वी का आदर-सत्कार करने के लिए आगरा का

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