Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 92
________________ क्षमापना खामणा... श्रावक का तीसरा कर्त्तव्य खामणा है, जो पूरे पर्युषण पर्व की आराधना का केन्द्रबिन्दु है। जिसमें परस्पर आत्मीय भाव से खमाने की प्रक्रिया रखी गई है। चाहे जैसी सुन्दर से सुन्दरतम आराधना की हो किन्तु खामणा के बिना समस्त आराधनाएं एक के आंकड़े के बिना शून्य के समान है। यह जीवात्मा अनादिकाल से इस संसार में भटक रही है। उसके मूल में मुख्यतया दो कारण हैं - राग और द्वेष । राग का सम्बन्ध जड़ वस्तु के साथ अधिक रहता है; गाड़ी, बंगला, आभूषण, वस्त्र आदि वस्तुओं पर राग की प्रधानता रहती है। परस्पर जीवों के सम्बन्ध में द्वेष की ही अधिकता रहती है। तनिक भी प्रतिकूल आचरण लगने पर तत्काल ही उसकी तरफ अरुचि। द्वेष उत्पन्न हो जाता है। यह जीवात्मा का स्वभाव है। वह किसी की अच्छाई या भलाई नहीं देख सकता है। इस स्वभाव को दूर करने के लिए भगवान् ने खामणा का कर्त्तव्य बतलाया है। कभी भी तुम्हारे और उसके बीच में वैर भाव जाग्रत हों तो तुरन्त ही क्षमा याचना कर लेनी चाहिए। उस समय न खमा सको तो पन्द्रह दिवस में क्षमा याचना कर लो। उस समय भी न खमा सको तो चार महीने में क्षमा याचना कर लो। यदि चार महीने में भी क्षमा याचना न कर सको तो सम्वत्सरी के दिन अवश्य ही क्षमा याचना कर लो। खमाने के बिना चाहे जितनी भी आराधना की हो, चाहे मासक्षमण किया हो अथवा साठ उपवास किए हों सब निष्फल है। शास्त्रकारों ने उसे भूक्खमारो से अर्थात् उसे भूखमरा कहा है। आज तो सम्वत्सरी प्रतिक्रमण करने के पश्चात् औपचारिक रूप से मिच्छा मि दुक्कडम् देगा अथवा पन्द्रह पैसे का पोस्टकार्ड लिखकर डाकघर का फायदा कराएगा। हमारे हृदय को शुद्ध करने के लिए यह अनमोल औषध है। पर्व के निमित्त तुम यदि खमाने के लिए जाओगे तो छोटे हो ऐसा नहीं लगेगा। मनुष्य हजारों लाखों रुपये खर्च

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