Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 91
________________ गुरुवाणी - २ पर्युषणा - तृतीय दिन ७३ ही कहा - हे स्वामिन्! व्रत ग्रहण करके इस वस्त्र जोड़ी को पहनिए । पेथड़ ने कहा क्या तुम तैयार हो ? प्रथमिणी ने हाँ कहकर स्वीकार किया। गुरु महाराज के पास जाकर नन्दीरचना के सन्मुख बत्तीस वर्ष की अवस्था में दोनों ने ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया । इस व्रत ग्रहण निमित्त ही पेथड़शाह ने चौदहसौ पूजा - जोड़ियाँ साधर्मिक बन्धुओं के लिए समस्त प्रदेशों में भेजी और इसके पश्चात् ही भीम द्वारा भेजी हुई वस्त्र जोड़ी को पहना। ऐसे अद्भुत साधर्मिक भक्ति करने वाले अनेक विशिष्ट महापुरुषों से इस शासन का प्रत्येक पृष्ठ देदीप्यमान हो रहा है। जगडुशाह की साधर्मिक भक्ति . .... 1 जगडुशाह ने भी साधर्मिक भक्ति में अपनी सम्पत्ति का उपयोग किया था। उसने घड़े के आकार के समान बड़े-बड़े सवा लाख लड्डू तैयार करवाए थे । प्रत्येक गाँव में जो कोई भी दीन-दुःखी होता उसकी सूची तैयार करवाई । लड्डुओं के अन्दर सोना मोहरें रखीं और साधर्मिक भाईयों में वितरित की । इस प्रकार स्वयं की लक्ष्मी को सार्थक किया था । आज हमारे समाज के लाखों साधर्मिक बन्धु कैसी दयनीय दशा में जीवन बिता रहे हैं? ऐसे विषम समय में हमारे समाज के सैकड़ों नहीं हजारों समृद्धिमान जो कि लखपति या करोड़पति हैं वे लोग स्वयं के पाँच दस परिवार के साथ अपने-अपने गाँव के साधर्मिक बन्धुओं को स्वयं का ही मानकर क्या निभाव नहीं कर सकते ? श्रीमन्तों के दिमाग में यह बात उतर जाए तो हमारा समाज और संघ भी उन्नति के शिखर पर चढ़ सकता है। यदि धर्म सच्चे अर्थ में जीवन में परिणत हो > जाए तो एक नवकारसी का प्रत्याख्यान भी अनंत कर्मों को भस्म करने वाला होता है।

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