Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 90
________________ ७२ पर्युषणा-तृतीय दिन गुरुवाणी-२ उपयोग कहाँ करूँ? गुरु महाराज के आदेश से माण्डवगढ़ में अट्ठारह लाख रुपये खर्च कर स्वर्णकलश ध्वजदण्ड सहित शत्रुजयावतार नामक बहोत्तर जिनालय वाला मन्दिर बनवाया। अन्य अनेक धर्म कार्य भी बहुत किए । एक दिन पेथड़ को साधर्मिक भक्ति करने का मन हुआ। माण्डवगढ़ में लाखों जैन निवास करते थे, उनकी सूची बनवाई। उस सूची में भी दु:खी कौन है और किसको कितनी जरूरत है? आदि सूचनाएं भी एकत्रित की। उसके बाद उसने समकितमोदक की प्रभावना की । घड़े के अन्दर लड्डू रखकर परिवार की आवश्यकतानुसार उसमें सोना मोहरें भी रखीं। इस प्रकार गुप्त रूप से साधर्मिक भक्ति की। माण्डवगढ़ में कोई नये श्रावक को आते हुए देखता तो मार्ग में घोड़े पर से उतरकर उसको प्रणाम करता। पेथड का साधर्मिकों के प्रति विलक्षण बहुमान था। भेंट से ब्रह्मचर्य स्वीकार .... ताम्रावती नामक नगरी में भीम नाम का एक श्रावक रहता था। जिसने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया था। इस भीम ने साधर्मिकों की भक्ति करने के लिए ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले ७०० भाई-बहनों के पास पूजा के वस्त्रों की जोड़ी भेजी थी। मन्त्री के रूप में एक जोड़ी पेथड़शाह के घर पर भी आयी। पेथड़शाह ने उस पूजा जोड़ी को तत्काल ही नगर के बाहर भेज दी और बड़े आडम्बर महोत्सव के साथ उस जोड़ी को अपने घर लाया। पेथड़शाह रोज इस जोड़ी की पूजा करता था किन्तु इन वस्त्रों को शरीर पर धारण नहीं करता था। उनका इस प्रकार का व्यवहार देखकर पेथड़ की पत्नी प्रथमिणी को यह संदेह हुआ कि साधर्मिक ने यह जोड़ी पहनने के लिए भेजी है किन्तु ये शरीर पर धारण क्यों नहीं करते हैं? पूजा के रूप में इसे अलग क्यों रखी है? प्रथमिणी ने अपने पति से पूछा। पेथड़ ने कहा - हे देवी! ब्रह्मचर्य व्रतधारक भीम ने यह जोड़ी ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने वालों के लिए ही भेजी है। मैं तो ब्रह्मचर्य व्रतधारक नहीं हूँ इसीलिए मैं इसे नहीं पहन रहा हूँ। प्रथमिणी ने तत्काल

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