Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 88
________________ ७० पर्युषणा-तृतीय दिन गुरुवाणी-२ निश्चित ही यह चित्रावेली का प्रभाव है। फिर से घड़ा खाली कर उसको सौंपता है और रबारण को कहता है - यह नई और बढ़िया इंढोणी लेती जा। बाई तो नई इंढोणी लेकर घर चली जाती है। पेथड़ चित्रावेली को लेकर घी के कुण्ड के नीचे रख देता है। घी का कुण्ड अखण्ड ही रहता है। चाहे जितना घी निकालो किन्तु वह भरा हुआ ही रहता है। साथ ही सुगन्धिदार भी रहता है। चारों तरफ पेथड़ के घी की प्रशंसा होने लगी झांझण का बुद्धि कौशल्य.... राजा के कानों तक पेथड़ के सुगन्धित घी की बात पहुँचती है। राजा प्रतिदिन भोजन के समय कटोरा लेकर घी लाने के लिए दासी को भेजता है। एक समय पेथड़ झांझण को दुकान पर बैठाकर भोजन करने के लिए गया था, उसी समय राजा की दासी कटोरा लेकर घी लेने के लिए आती है। झांझण स्पष्टतः ना कह देता है। दासी कहती हैराजाजी भोजन करने के लिए बैठे हैं इसीलिए थोड़ा सा घी दे दो। झांझण दृढ़ता के साथ ना कर देता है और कहता है - जा, तेरे राजा को जाकर कह देना कि घी नहीं मिलेगा। दासी नाराज होकर वापस लौटती है और राजा को नमक मिर्च लगाकर बात कह देती है। राजा एकदम क्रोधित हो जाता है और अपने सेवकों को हुक्म देता है कि जाओ पेथड़ को पकड़कर ले आओ। सेवक पेथड़ को लेने के लिए उसके घर जाते हैं। राजसेवकों को देखकर पेथड़ घबरा जाता है। सोचता है - बड़ी कठिनाई से व्यापार जमा था और इधर राजा का बुलावा आ गया। राजपुरुषों ने उसको दुकान पर भी नहीं जाने दिया और सीधे राजा के पास ले गए। राजा ने पूछा - अरे पेथड़! तूने आज घी क्यों नहीं दिया? पेथड़ ने कहा - हे देव! मै उस समय दुकान पर नहीं था, मेरा पुत्र था। उसने घी क्यों नहीं दिया, मैं नहीं जानता। यह सुनकर राजा ने तत्काल ही राजसेवकों को हुक्म दिया कि जाओ और झांझण को पकड़कर ले आओ। उस समय पेथड़ विचार करने लगा -

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