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गुरुवाणी - २
तपाराधना
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जाता है। ऐसे तप को शास्त्रकारों ने लंघन कहा है। तप तो शरीर और मन दोनों को शुद्ध करता है। शास्त्रकार तो कहते हैं कि वर्ष में एक अट्ठम का तप तो करना ही चाहिए। यदि ज्यादा तप नहीं कर सकते हो तो इसके लिए भी अनेक सरल मार्ग बतलाए गए हैं। तुम अट्टम नहीं कर सकते हो तो अलग-अलग तीन उपवास कर सकते हो। वह भी नहीं कर सकते हो तो छ: आयम्बिल अथवा नव नीवि अथवा बारह एकासने कर सकते हो । फिर भी कोई ऐसा कहे - साहेब ! हमें तो सुबह - सुबह चाय मिले तो ही हमारे शरीर की मशीन चल सकती है। तो उनके लिए चौवीस बियासणा रखे गए हैं। यह भी नहीं होता हो तो अब भी उपाय है - छ: हजार गाथा का स्वाध्याय । अन्त में यह भी संभव न हो तो नवकार मन्त्र की साठ बँधी हुई माला का जाप करके भी अट्ठम तप पूर्ण किया जा सकता है। नागकेतु .
शास्त्र में नागकेतु की कथा प्रसिद्ध है। उसने पूर्व जन्म में अट्ठम करने की भावना की थी । इसी भाव संकल्प से झोपड़ी में सो रहा था । सौतेली माता ने आग लगा दी और वह जल कर मर गया। दूसरे जन्म के साथ ही घर के लोगों के मुख से अट्ठम की बात सुनकर उसने अट्ठम तप किया। जन्मजात बालक तीन दिन तक भूखा किस प्रकार रह सकता है ? फलत: उसे मूर्छा आ गई। मरा हुआ समझकर उसको जमीन में गाढ़ने के लिए ले गये। उसी समय इन्द्र का आसन कंपित हुआ । इन्द्र आता है और बालक को मूर्छा रहित करता है । बच्चा मर गया इस आघात से उसके माता-पिता भी मृत्यु को प्राप्त हो गये थे । नागकेतु अकेला ही रह गया । सम्बन्धियों ने उसका लालन-पालन किया और वह क्रमश: बड़ा हुआ । अन्त में उसे केवलज्ञान प्राप्त होता है । कथा प्रसिद्ध है अतः उसका विस्तार नहीं करता । इस प्रकार भगवान् महावीर का तपोधर्म सर्वश्रेष्ठ है । दूसरी ओर देखें तो हिन्दु धर्म में अधिकांशतः पर्व के दिवस खाने-पीने और मौज-मजा के लिए होते हैं जबकि जैन धर्म में ही एक ऐसी