Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 71
________________ गुरुवाणी-२ ५३ पर्युषणा - द्वितीय दिन साढ़े तेरह संघ निकालोगे.... ___ उस समय में तीर्थयात्रा अत्यन्त ही दुर्लभ थी। सीमाएं बदलती रहतीं, इससे लूटेरों का भय अधिक रहता था। उस समय संघ की प्रथा चालू हुई। कोई बड़ा धनवान होता तो वह संघ निकालता और उस संघ में हजारों यात्रिगण सम्मिलित होते। वस्तुपाल ने संघ निकालने की तैयारी की। सात लाख यात्री थे। संघ लेकर निकला, नगर की सीमा से बाहर आते ही चिड़िया की गहरी आवाज उसके कानों में पड़ी। वस्तुपाल ने ज्योतिषि को पूछा - यह आवाज अच्छे शकुन वाली है किन्तु इसका अर्थ क्या है? ज्योतिष की गणना करके ज्योतिषि ने कहा - इस चिड़िया की आवाज कितनी दूर से आ रही है? खोज करने पर ज्ञात हुआ कि यह चिड़िया की आवाज साढ़े तेरह मकान के बाद से आ रही है। उस आधार पर ज्योतिषि ने कहा - आप साढ़े तेरह संघ निकालेंगे। (कहीं-कहीं साढ़े बारह संघ की बात आती है।) जाओ विजय करो। संघ ने प्रयाण किया। प्रत्येक गाँव और प्रत्येक संस्थाओं में सहायता करता हुआ सिद्धाचल पहुँचा। यात्रीगण गिरिराज पर चढ़े। अन्य प्रसंग के अनुसार वस्तुपाल यात्रार्थ गए थे उस समय दादा के प्रक्षाल में अत्यधिक भीड़ थी। लाखों यात्री थे। जीवन में एक-आध बार यात्रा होती है। लोग उत्साह में थे। स्पर्धा से एक के ऊपर एक गिर रहे थे। वहाँ पुजारी ने देखा कि किसी के हाथ से कलश छूट कर भगवान् पर गिर गया तो भगवान् की मूर्ति खंडित हो जाएगी। इस भय से भगवान् को नाक पर्यन्त फूलों से ढंक दिया। आज के समान कलश भी छोटे-छोटे नहीं होते थे उस समय तो घड़ों के समान बड़े कलश होते थे। वस्तुपाल ने यह दृश्य देखा, उसका मन कम्पित हो उठा। कलश आदि के कारण अथवा भविष्य में मुसलमानों का भय है, वे मुसलमान बादशाह जब चाहे तब चढ़ आते है। मेरे भगवान् को किसी प्रकार का नुकसान न हो कि मेरे साधर्मिक भाई प्रभु दर्शन से वंचित

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