Book Title: Guru Vani Part 02 Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain TrustPage 63
________________ गुरुवाणी-२ पर्युषणा - द्वितीय दिन मे नहीं था। उस समय गुजरात में कर्णावती नगरी की प्रसिद्धि चारों ओर थी। इस नगरी का दूसरा नाम आशाभील के द्वारा निर्मित होने के कारण आशापुरी भी था और आज यह अहमदाबाद कहलाता है। उदा ने कर्णावती की बहुत प्रसिद्धि सुनी थी। उसने सोचा कि यदि मै ऐसे बड़े शहर में चला जाऊं तो मुझे रोटी तो अवश्य ही प्राप्त हो जाएगी। यह सोचकर वह लोटा-डोरी लेकर कर्णावती नगरी की ओर चला। वह उस नगरी में पहुँचा तो अवश्य, किन्तु इस विशाल नगरी में किसके यहाँ जाऊं, यहाँ कोई जान-पहचान नहीं है। उसने विचार किया - चलो, दादा के मन्दिर जाऊं। थके हुए व्यक्ति का यही विश्राम स्थल होता है। मन्दिर आया, संसार के दुःख को भूलकर उसने प्रभु की भक्ति की। उस समय एक लाछी नाम की छीपी भावसार जाति की श्राविका दर्शन करने के लिए आई थी। उसने इस अज्ञात आगन्तुक को देखा, दर्शन करके वह बाहर निकली। उदा भी दर्शन करके बाहर चबूतरे पर बैठा था। लाछीबाई ने पूछा – भाई! कहाँ के निवासी हो? कहाँ उतरे हो? किसके मेहमान हो? उदा ने उत्तर दिया - व्यापार-धन्धा करने के लिए आया हूँ और आपका मेहमान हूँ। वह लाछी बाई साधर्मिक भक्ति के लाभ और महत्त्व को जानती थी। इसीलिए उदा को अपने घर ले गई। भोजन करवाया, केवल यही नहीं साधर्मिक होने के कारण सब सामग्री से युक्त घर भी रहने के लिए प्रदान किया। धीमे-धीमे फेरी लगाते हुए उदा का भाग्य जाग उठा। उसने घर को सुधारने के लिए खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया। खुदाई के समय धन का कलश निकला। उस कलश को लेकर वह लाछी छीपी के यहाँ गया। उदा ने निवेदन किया - यह कलश आप ग्रहण कर लें। लाछी छीपी अस्वीकार करती है और कहती है - इतने वर्षों से यह घर मेरे अधिकार में ही था किन्तु गड़ा हुआ धन कभी नहीं निकला। आज एक मकान तुम्हारे अधिकार में है तब यह निधान निकला है। इसीलिए यह धन भी तुम्हारा है। दोनों के बीच में इस प्रश्न को लेकर वाद-विवाद होताPage Navigation
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