Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 49
________________ ३१ गुरुवाणी-२ पर्युषणा-प्रथम दिन कुमारपाल महाराज ने स्वयं के अट्ठारह देशों में अहिंसा का प्रचार किया। चारों ओर से हिंसा बंद करवाई। इसी बीच में नवरात्रि के दिन आए। राज्य के मन्दिर में सातम के दिन सात सौ, आठम के दिन आठ सौ और नवमी के दिन नौ सौ पशुओं की बली दी जाती थी। मन्दिर राज्य का था और पशु भेंट करने का कार्य कुमारपाल का था। कुमारपाल महाराजा ने स्पष्ट कह दिया - एक भी जीव का भोग / बली नहीं दी जाएगी। राजा के इस आदेश का प्रजा में खूब विरोध हुआ, बवंडर मचा, जनता ने कहा - जो भोग नहीं चढ़ाया गया तो देवी क्रोधित हो जाएगी, उससे प्रजा और राजा दोनों का नाश होगा, किन्तु महाराजा कुमारपाल अडिग रहे । महाराजा ने प्रजा को कहा - माता को भोग नहीं चाहिए किन्तु भोग तो आप लोगों को चाहिए। आज से यह बली बंद की जाती है। रात्रि का समय हुआ। जिस देवी को भोग अर्पित किया जाता था वह कंटकेश्वरी देवी महाराजा के पास आयी और उसने कहा - महाराज! मेरा भोग मुझे चाहिए, नहीं तो तहसनहस हो जाएगा। तब भी महाराजा अडिग और निश्चल रहे । देवी ने कोपायमान होकर त्रिशूल फेंका और वह कुमारपाल को लगा। उसके कारण कुमारपाल के सारे शरीर में कुष्ठरोग व्याप्त हो गया। देवी अदृश्य हो गई। कुमारपाल विचार करते हैं - प्रातः काल में प्रजा में यह बात फैलेगी तो अहिंसा धर्म पर खूब टीका-टिप्पणी होगी, शासन की अवहेलना / अपकीर्ति होगी। इसकी अपेक्षा तो यही श्रेष्ठ होगा कि मैं अपने प्राणों की आहूति दे दूं। कुमारपाल स्वप्राणों की आहूति देने के लिए तैयार हुए। मन्त्री को बुलाया, मन्त्री ने कहा - पहले आप गुरुमहाराज के पास चलिए, उसके बाद आगे की बात होगी। दोनों ही व्यक्ति रात्रि में ही गुरुमहाराज के पास आते हैं । उपाश्रय में प्रवेश करते -समय किसी औरत के रोने की आवाज आती है। कुमारपाल चौंकते हैं, .. रात्रि में उपाश्रय में स्त्री कहाँ से? आचार्य महाराज से पूछते है। आचार्य

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