Book Title: Gomtesh Gatha
Author(s): Niraj Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 6
________________ आमुख श्री नीरज जैन की प्रस्तुत कृति को मैंने केवल पढ़ा ही नहीं है, अपितु लेखक के मुख से इसके कई महत्वपूर्ण प्रकरण सुने भी हैं । पुस्तक की कथावस्तु पर और इसके संयोजन पर उनसे बराबर चर्चा होती रही है । 'गोमटेश - गाथा' को नीरज जी ने इतनी रोचक शैली में संयोजित किया है कि वह तथ्यों को अभिव्यक्त करते हुए एक सहज लोक कथा बनी रहती है और एक सामान्य पाठक भी उसे अन्त तक पढ़ने के लोभ का संवरण नहीं कर सकता । लेखक से मेरा प्रथम परिचय दो वर्ष पूर्व जब मैं बुन्देलखण्ड के तीर्थों की यात्रा कर रहा था, हुआ। उससे पहले मैं सोचता था कि वे जैन शिल्पकला के विशेषज्ञ हैं और मात्र कला विषयों की ही चर्चा करते हैं । किन्तु इस कृति को पढ़कर अब मैं निःसंकोच कह सकता हूं कि भगवान गोमटेश्वर की सहस्राब्दी प्रतिष्ठापना और महामस्तकाभिषेक के अवसर पर जो साहित्य मेरे देखने में आया है, उसमें इस कृति का शीर्षस्थ स्थान है । माध्यम से किया पुस्तक के कुछ अंश ऐसे भी हैं, जिनके भीतर से लेखक के जीवन संघर्ष की झांकी मिलती है । मैंने उनके 'ताश के बावन पत्ते' पुस्तिका भी देखी है, लेखक ने अपने 52 वर्षों के जीवन संघर्ष का आत्म निरीक्षण उस कृति के है । यह स्वयं निरीक्षण की कला बहुत ही अनूठी एवं मार्मिक मुझे प्रतीत होती है । 'गोमटेश गाथा' के प्रारम्भ के अध्यायों को इस प्रकार नियोजित किया गया है कि श्रवणबेलगोल से सम्बन्धित सारी परिचयात्मक सामग्री बड़ी कुशलता से प्रस्तुत कर दी गई है। विशेषकर 'देव, शास्त्र, गुरु की पावन त्रिवेणी' शीर्षक अध्यायों में - वहाँ इस संतापहारी परम पावन तीर्थं के धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से संस्थापित करनेवाले महापुरुषों की अमर गाथा को, ज्ञान और श्रद्धा की दीप- ज्योति से उजागर किया गया है । ६

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