Book Title: Gomtesh Gatha Author(s): Niraj Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 5
________________ प्रबन्ध कुशलता और स्नेहपूर्ण अतिथि सत्कार के साथ उसके श्रेष्ठ मर्यादित कार्यकलाप मन को मोह लेते हैं, कहीं बालक सौरभ की धार्मिक संस्कारों से युक्त बालचेष्टाएँ मन को लुभाती हैं । कहीं गुल्लिका-अज्जी की लघुकाय गुल्लिका में से अक्षय घट-सी निसृत दुग्ध धारा के द्वारा गोमटेश के प्रथम महामस्तकाभिषेक की अनुपम अनुभूतियों का आस्वादनीय अंकन है। इस प्रकार गद्यकाव्य-सा प्रवहमान यह आख्यान, धार्मिक एवं गार्हस्थ जीवन के प्रत्येक पक्ष का परिचायक तथा जीवनोत्थान के सुगम मार्ग का दिग्दर्शक है। __ लेखक ने अपनी तन्मयता से इस गोमटेश-गाथा के बहाने काल सम्बन्धी सहस्रों शताब्दियों के अंतर को वर्तमान के अंचल में अंकित कर दिया है, क्षेत्र सम्बन्धी कर्नाटक प्रान्त की दूरी को अपने स्वाध्याय कक्ष में समेट लिया है और विभिन्न पात्रों के मनोजगत में उदित होनेवाले राग-विराग, लोभ-उदारता, तृष्णा और संतोष आदि के अन्तर्द्वन्द्वों को पाठक की अनुभूति में समाविष्ट कर दिया है। ___ गृहस्थावस्था में प्रज्ञावान् अग्रज होने के नाते नीरज जी ने मुझे सदैव अधिक से अधिक देने का प्रयास किया, किंतु मेरी मति गुल्लिका, गुल्लिका-अज्जी की गुल्लिका सदृश लघुकाय ही थी, अतः मैं कुछ अधिक नहीं ले सकी, अब उस में से भला उन्हें क्या, कितना और कैसे दे सकती हूँ ? हाँ 'गोमटेश गाथा' की इस पाण्डुलिपि को देखकर मेरी अन्तरात्मा से यह अन्तर्ध्वनि अवश्य निकलती है कि उनकी यह 'अनुपम कथाकृति' यशरूपी रथ पर आरूढ़ होकर दिग्दिगन्त में युगयुगान्त तक पर्यटन करती हुई, जन-मन का कालुष्य हरती रहे और वे स्वयं शीघ्रातिशीघ्र चारित्र रथारूढ़ होकर आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हों। इति शुभम् । शरत् पूर्णिमा २३-१०-८० ---आर्यिका विशुद्धमतीPage Navigation
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