Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे एंतिन्वय॑नाममनुळ्ळ कर्मनोकर्मसमयप्रबद्धमुक्तप्रमाणमं प्रतिसमयं कटुगमेंदु पेन्दु मत्तं प्रतिसमयमुदयमुं सत्वमुमेनितें बुदं पेळल्वेडि मुंदण सूत्रमं पेळ्दपं ।
जीरदि समयपबद्धं पओगदोऽणेगसमयबद्धं वा ।
गुणहाणीण दिवढं समयपबद्ध हवे सत्तं ॥६॥ जीप्यते समयप्रबद्धः प्रयोगतोनेकसमयबद्धो वा। गुणहानीनां द्वयर्द्धः समयप्रबद्धो भवेत्सत्वं ॥
प्रतिसमयमो दु कार्मणसमयप्रबद्धमुदयिसुगु। सातिशयक्रिययोळात्मन सम्यक्त्वादिप्रवृत्तियं प्रयोगमेंबुददु कारणदि मेणेकादश निर्जराविवक्षेयिंदमनेकसमयप्रबद्ध प्रतिक्षणमुदयिसुगुं। द्वयर्द्धगुणहानि प्रमितसमयप्रबद्धं प्रतिसमयं सत्वमक्कुमल्लि शिष्यनेदपं । प्रतिक्षणमोंदु समयप्रबद्धं बंधमप्पुदोदु समयप्रबद्धं फलदानपरिणतियिनुदयिसिगळिसुगुमप्पृदरिनन्तु मतं सत्वं द्वयर्द्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्ध दोडुत्तरमं मुन्नं जीवकांडदोळु पेन्द त्रिकोणरचनाभिप्रायदिदं पेन्दु । कर्मक्क सामान्यादिभेदप्रभेदमं गाथाद्वयदिदं पेळ्दपरु ।
कम्मत्तणेण एक्कं दव्वं भावोत्ति होदि दुविहं तु ।।
पोग्गलपिंडो दव्वं तस्सत्ती भावकम्मं तु ॥६॥ कर्मत्वेनैक द्रव्यं भाव इति भवति द्विविधं तु पुद्गलपिंडो द्रव्यं तच्छक्तिर्भावकर्म तु॥ समये समये प्रबध्यते इति समयप्रबद्धः ॥४॥ अथ प्रतिसमयभवं बंधं प्रमाणयित्वा उदयसत्त्वे प्रमाणयति
प्रतिसमयमेकः कार्मणसमय प्रबद्धः जीर्यते उदेति, वा अथवा सातिशयक्रियोपेतस्य आत्मनः सम्यक्त्वादिप्रवृत्तिलक्षणप्रयोगेन हेतुना एकादशनिर्जराविवक्षया अनेकसमयप्रबद्धो जीर्यते । द्वयर्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धः प्रतिसमयं सत्त्वं भवति । ननु प्रतिक्षणमेकः समयप्रबद्धो बध्नाति एको गलति तदा सत्त्वेऽप्येक एव स्यात् कथं द्वघर्धगुणहानिमात्रः ? तन्न प्रागुत्तरत्रापि त्रिकोणरचनायां व्यक्तप्रतिपादनात् ॥५॥ कर्मणः सामान्यादिभेदप्रभेदान् गाथाद्वयेनाहअर्थात् योगके अनुसार ही कर्मपरमाणुओंका बन्ध होता है। समय-समयमें जो बँधता है उसे समयप्रबद्ध कहते हैं ॥४॥
प्रति समय होनेवाले बन्धका प्रमाण कहकर उदय और सत्त्वका प्रमाण कहते हैं
प्रतिसमय एक कार्मण समयप्रबद्धकी निर्जरा अर्थात् उदय होता है। अथवा सातिशय क्रिया सहित आत्माके सम्यक्त्व आदिकी प्रवृत्तिरूप प्रयोगके कारण जो निर्ज स्थान कहे हैं उनकी विवक्षासे एक समयमें अनेक समयप्रबद्धकी निर्जरा करता है। तथा प्रति समय डेढ़ गुणहानि प्रमाण समयप्रबद्धका सत्त्व होता है।
शंका-जब प्रति समय एक समयप्रबद्ध बाँधता है और एक ही निर्जीर्ण होता है तो ३० सत्त्वमें भी एक ही होना चाहिए, डेढ गुण-हानि प्रमाणकी सत्ता कैसे सम्भव है ?
___ समाधान-ऐसी शंका उचित नहीं है, क्योंकि पहले (जीवकाण्डमें) योगमार्गणामें त्रिकोण रचनाके द्वारा इसे स्पष्ट किया है और आगे भी करेंगे ।।५।।
कर्मके सामान्य आदि भेद-प्रभेदोंको दो गाथाओंसे कहते हैं१. म मनुक्तं ।
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राके ग्यारह
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