Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्ड त्रिभागमें परभवको आयुका बन्ध होता है । ( देखो कर्मकाण्ड गा. १५८ की टीका तथा गा. ६४०)। इसके सिवाय एक मतभेद और भी है । यदि आठों विभागोंमें आयुबन्ध न हो तो अनुभयमान आयुका एक अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर परभवको आयु नियमसे बंध जाती है। यह सर्वमान्य मत है। किन्तु किन्हींके मतसे अनुभूयमान आयुका काल आवलोके असंख्यातवें भाग प्रमाण शेष रहनेपर परभवको आयुका बन्ध नियमसे हो जाता है (देखो कर्मकाण्ड गा. १५८ और उसकी टीका )।
सम्पादनादिके सम्बन्धमें
यतः कर्मकाण्ड गोम्मटसारका ही दूसरा भाग है अतः इसकी भी कन्नड़ टीकाको प्रतिलिपि आदिके
पूर्व कथन ही जानना चाहिए। संस्कृत टीकाका आधार कलकत्ता संस्करण हो रहा है। दिल्लीके जैनमन्दिरसे लाला पन्नालालजी अग्रवाल द्वारा एक हस्तलिखित प्रति प्राप्त हुई थी। किन्तु तीसरे प्रकरणसे उसमें जो टीको मिली उसमें भेद होनेसे उसे छोड़ देना पड़ा और प्रयत्न करनेपर भी संस्कृत टीकाकी कोई हस्तलिखित प्रति प्राप्त नहीं हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि कर्मकाण्डपर संस्कृतकी अन्य भी टोकाएं थीं। कलकत्ता संस्करण एक-दो स्थानमें टिप्पणमें सूचित किया है कि अभयचन्द्र सूरिके नामांकित टीकामें विशेष, पाठ मिलता है । हमने उस पाठको कन्नड टोकासे मिलाया तो बिलकुल मिल गया । इसीसे हमने वह विशेष पाठ और उसका हिन्दी अर्थ भी, जो पं. टोडरमलजीको टोकामें नहीं है अलगसे इसी में दे दिया है। हमें ऐसा लगता है कि कन्नड़ टीका अभय चन्द्रसूरिकी संस्कृत टीकाका रूपान्तर तो नहीं है । कन्नड़ टीकाकार केशववर्णी अभयसूरि सिद्धान्त चक्रवर्तीके शिष्य थे। और उन्होंने ई. १३५९ में अपनी कन्नड़ टीका रची थी।
कर्मकाण्डकी संस्कृत टीकाओंकी प्रतियां प्राप्त होने पर उनके तुलनात्मक अध्ययनसे ही प्रकृत विषयपर प्रकाश पड़ सकता है ।
श्रीस्याद्वादमहाविद्यालय भदैनी, वाराणसी
१-१-८०
-कैलाशचन्द्र शास्त्री
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