Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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शेष प्रकृतियों में सादि और अध्रुव बन्ध हो
क्यों ?
मूल प्रकृतियों में स्थितिबन्ध
उत्तर प्रकृतियों में उत्कृष्ट स्थितिबन्ध
उत्कृष्ट स्थितिबन्धका कारण
उत्कृष्ट स्थितिबन्ध किसके ?
संक्लेश परिणामोंको रचना अंक संदृष्टि द्वारा मूल प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध
तीर्थंकर और आहारकका जघन्य स्थितिबन्ध कब, किसके ?
आयुकर्मके भेदोंका जघन्य स्थितिबन्ध एकेन्द्रिय - विकलेन्द्रियके मिध्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कितना
स्थितिबन्ध अट्ठाईस विकल्प
उनमें से आदिके चौबीस भेदोंकी स्थितिका आयाम लाने के लिए अन्तराल भेदोंका त्रैराशिकों द्वारा विभाजन
उनमें आबाधाकालका प्रमाण
एकेन्द्रिय जीवोंके स्थितिबन्ध और बबाधा के भेदका तथा कालका प्रमाण
दो-इन्द्रिय जीवोंके स्थितिबन्ध और आबाघा
कालके भेदोंका तथा कालका प्रमाण
विषय-सूची
कर्मकी आबा
प्रस्ता०-६
१२४
१२६
१२६
१३०
१३०
१३४
१३६
१३९
त्रैराशिक द्वारा अन्य प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और जनन्य स्थितिबन्धको लाने का विधान संज्ञी, असंज्ञी चतुष्टय और एकेन्द्रियकी आबाघा १४३ जघन्य स्थितिबन्धका साधक करणसूत्र अंक संदृष्टि द्वारा स्पष्टीकरण
१४५
१५१
चौदह जीवसमासों में उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिबन्धका विभाग
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१३७
१३७
१३८
१५९
१६१
१६१
१६५
१६६
त्रीन्द्रिय आदि जीवों में कथन
१६८
१७०
उक्त सब कथन मनमें रखकर शलाका निक्षेपण संज्ञिपंचेन्द्रिय भेदोंके कथनमें विशेषता
१७५
जघन्य स्थितिबन्ध करनेवाले जीव
१७९
स्थितिके अजघन्य आदि भेदों में सादि-आदि भेद १८०
आबाधाका लक्षण
१८२
मूल प्रकृतियोंमें आबाधा
१८२
अन्तः कोटी-कोटी सागरकी स्थितिकी माबाधा १८३
१८४
१६५
उदीरणाकी अपेक्षा आबाधा
निषेकका स्वरूप
निषेक रचनाका क्रम
अनुभागबन्धका कारण
उत्तर प्रकृतियोंके तीव्र अनुभागबन्ध किसके जघन्य अनुभागबन्ध किनके
मूल प्रकृतियोंके उत्कृष्ट आदि अनुभागके सादि-आदि भेद
उत्तर प्रकृतियोंके उत्कृष्ट आदि अनुभागबन्धमें सादि-आदि भेद
घातिकर्मों में अनुभागका स्वरूप
उत्तर प्रकृतियों में से मिथ्यात्व में अनुभागका
स्वरूप
मिथ्यात्व आदि प्रकृतियोंमें अनुभागका दर्शक यन्त्र
देशघाति १७ प्रकृतियोंमें लता, दारु आदि रूप
अनुभागका यन्त्र
प्रदेशबन्धका कथन
एकक्षेत्र - अनेक क्षेत्रका लक्षण
योग्य और अयोग्य पुद्गल द्रव्य
उनमें सादि-अनादिका प्रमाण उसको लाने की विधि
rr
१८६
१८७
१८८
१९१
१९१
१.४
सर्वघाती देशघाती द्रव्यके विभागका क्रम उत्तर प्रकृतियों में विभाग
२००
अनुभाग
२०५
समस्त प्रकृतियों में शैल आदि तीन रूप अनुभाग २०६ नोकषायों में अनुभाग
२०६
अघातिकर्मों में गुड़, खांड रूप अनुभाग
२०७
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२०१
२०२
२०३
२०८
२०९
२०९
२१०
२१०
२१२
समयप्रबद्धका प्रमाण
२१७
२१७
समयप्रबद्ध में आठों कर्मोंका भाग वेदनीयको अधिक भाग क्यों ?
२१८
अन्य कर्मोंको उनकी स्थिति के अनुसार विभाग २१९ विभागका अनुक्रम
२१९
मूल कर्मको मिले द्रव्यका उसकी उत्तर
प्रकृतियों में विभाग
२२१
घातिकमोंमें सर्वघाती देशघाती द्रव्यका विभाग २२२ सर्वघाती द्रव्य लाने के लिए प्रतिभागहारका प्रमाण
२०५
२२५
२२९
२३०
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