Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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इसी तरह दसवें गुणस्थान तक आठों कर्मोंका उदय होता है। ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में मोहन के बिना सात कर्मोंका उदय होता है । तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानमें चार कर्मोंका उदय होता है । अतः आठ कर्मोंके तीन उदयस्थान होते हैं- -प्राठ प्रकृतिक, सात प्रकृतिक और चार प्रकृतिक ।
प्रस्तावना
ग्यारहवें गुणस्थान तक आठ कर्मों की सत्ता रहती है । बारहवें गुणस्थान में मोहनीयके बिना सात कर्मों की सत्ता रहती है । तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानमें चार कर्मों की सत्ता रहती है । अतः आठों कर्मों के तीन सत्त्व स्थान है-आठ प्रकृतिक, सात प्रकृतिक और चार प्रकृतिक । इसी तरहका कथन प्रत्येक कर्मके विषय में किया गया है । आठों कर्मों में से वेदनीय, आयु और गोत्रकर्मकी उत्तरप्रकृतियों में से एक जीवके एक समय में एक ही प्रकृतिका बन्ध होता है और एकका ही उदय होता है । तथा ज्ञानावरण और अन्तरायको पाँचों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध, उदय और सत्व होता । अतः इनको छोड़कर शेष दर्शनावरणीय, मोहनीय और नामकर्ममें बन्धस्थानों, उदयस्थानों और सत्त्वस्थानोंका कथन बहुत विस्तारसे किया
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प्रत्येक के कथन के पश्चात् त्रिसंयोगी भंगका कथन है सत्त्व, और सत्त्वमें बन्ध और उदयका कथन किया है । आधेय बनाकर कथन किया है। पंचसंग्रहके अन्तर्गत शतक कर्मकाण्डका उक्त कथन उसका ऋणी हो सकता है। कुछ गाथाएं भी दोनों में समान हैं ।
अर्थात् बन्धमें उदय सत्व, उदयमें बन्ध और फिर बन्धादिमेंसे दो को आधार और एकको और सप्ततिका अधिकार में भी उक्त कथन है ।
इस प्रकरण में प्रसंगवश आगत कर्मविषयक अन्य भी ज्ञातव्य विषय हैं । यह अधिकार बहुत विस्तृत है । इसमें ३३४ गाथाएँ हैं ।
६. प्रत्ययाधिकार -
इस अधिकार में कर्मबन्धके कारणों का कथन है । मूल कारण चार हैं- मिथ्यात्व अविरति कषाय और योग और इनके भेद क्रमसे पाँच, बारह, पच्चीस और पन्द्रह सब मिलकर सत्तावन होते हैं । इन्हीं मूल और उत्तर प्रत्ययोंका कथन गुणस्थानोंमें किया गया है कि किस गुणस्थानमें बन्धके कितने प्रत्यय होते हैं | और उनके भंगों का भी कथन है । प्रा. पंचसंग्रह के शतकाधिकार के प्रारम्भमें यह कथन बहुत विस्तारसे है । कर्मकाण्ड में केवल पच्चीस गाथाओं में है तो पंच संग्रह में सवा सौ गाथाओं में । प्रारम्भको दो मूल गाथाएँ दोनों ग्रन्थोंमें समान हैं । उनमें कहा है 'प्रथम गुणस्थानमें उक्त चारों प्रत्ययोंसे कर्मबन्ध होता है । बादके तीन गुणस्थानों में मिथ्यात्वको छोड़ शेष तीन प्रत्ययोंसे कर्मबन्ध होता है । पाँचवें गुणस्थानमें एक देश असंयम कषाय और योगसे कर्मबन्ध होता है । उससे ऊपरके पांच गुणस्थानों में कषाय और योगसे कर्मबन्ध होता है । ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें, गुणस्थान में केवल योगसे कर्मबन्ध होता है
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आगे गुणस्थानों में उत्तर प्रत्ययोंका कथन है । अन्तमें दोनों ही ग्रन्थोंमें कर्मबन्धके विशेष कारण कहे हैं जो तत्त्वार्थसूत्र के छठे अध्यायके अन्तमें कहे हैं । दोनों ग्रन्थोंमें ये गाथाएँ प्रायः समान हैं। पंचसंग्रह में इन्हें मूल गाथा कहा है । अतः ये गाथाएँ पंचसंग्रहसे ही ली गयी जान पड़ती हैं । इस प्रकार यह कथन कर्मकाण्ड में पंचसंग्रह से संग्रहीत होना चाहिए ।
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७. भावचूलिका -
इस अधिकारमें औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक भावोंका तथा उनके भेदोंका कथन करके गुणस्थानों में उनके स्वसंयोगी और परसंयोगी भंगोंका कथन किया है ।
प्रस्ता०-५
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