Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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प्रस्तावना
२३
बीस प्ररूपणाओं का कथन नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि सत्प्ररूपणा सूत्रों की धवला टीका में गुणस्थान और मार्गणाओं का कथन वीरसेन स्वामी ने 'पंचसंग्रह' के जीवसमास नामक अधिकार के आधार पर ही किया है, क्योंकि उसमें प्रमाण रूप से उद्धृत लगभग सवा सौ गाथाएँ पंचसंग्रह की हैं। इसकी विगत नीचे दी जाती है
सत्प्ररूपणा में पहले मार्गणाओं का निर्देश है, पीछे गुणस्थानों का। और पंचसंग्रह के जीवसमास में पहले गुणस्थानों का कथन है, पीछे मार्गणाओं का। गोम्मटसार जीवकाण्ड में भी पंचसंग्रह का ही क्रम है और प्रायः गाथाएँ भी वही हैं। सत्प्ररूपणा के चौथे सूत्र में चौदह मार्गणाओं के नाम गिनाये हैं। उसकी धवला में चौदह मार्गणाओं का सामान्य कथन करते हुए वीरसेन स्वामी ने चौदह मार्गणाओं से सम्बद्ध सोलह गाथाएँ उद्धृत की हैं जो पंचसंग्रह के जीवसमास अधिकार में वर्तमान हैं।
आगे गुणस्थानों के वर्णन में बाईस गाथाएँ प्रमाणरूप से उद्धृत हैं।
जीवसमासाधिकार में उनकी क्रमसंख्या ३, ६, ७,६, १०, १२, ११, १३, १४, १५, १६, १८, १६, २०, २१, २३, २४, २५, २७, २६, ३०, ३१ है। केवल एक स्थान में गाथा का व्यतिक्रम है। साधारण-सा पाठभेद भी क्वचित् ही है।
सत्प्ररूपणा में गणस्थान के पश्चात मार्गणाओं का क्रमशः विस्तार से कथन है। उसकी धवला में प्रत्येक मार्गणा के अन्तर्गत जीवसमास से गाथाएँ उद्धत हैं। उनका विवरण नीचे दिया जाता है।
१. गतिमार्गणा में गति सम्बन्धी पाँच गाथाएँ उद्धृत हैं और उनकी क्रमसंख्या जीवसमास में ६०
से ६४ तक हैं। २. इन्द्रियमार्गणा में जीवसमास की गाथा ६६, ६७, ६६, क्रम से उद्धृत हैं। ३. कायमार्गणा में ग्यारह गाथाएँ उद्धृत हैं जो जीवसमास में हैं, किन्तु उनके क्रम में अन्तर है। ४. योगमार्गणा में बारह गाथाएँ उद्धृत हैं। उनमें अन्तिम को छोड़कर जो धवला में प्रथम उद्धृत
है, शेष जीवसमास में यथाक्रम पायी जाती हैं। केवल तीन गाथाओं के प्रथम चरण में पाठभेद
५. वेदमार्गणा में उद्धृत चार गाथाएँ जीवसमास में यथाक्रम हैं। ६. कषायमार्गणा में उद्धृत चार गाथाओं में पाठभेद है।
ज्ञानमार्गणा में भी उधृत आठ गाथाएँ जीवसमास में यथाक्रम हैं। ८. संयममार्गणा में भी उद्धृत आठ गाथाएँ जीवसमास में यथाक्रम हैं। ६. दर्शनमार्गणा में उद्धृत तीन गाथाएँ जीवसमास में यथाक्रम हैं। १०. लेश्या मार्गणा में उद्धृत दस गाथाएँ जीवसमास में यथाक्रम हैं। ११. सम्यक्त्व मार्गणा में उद्धृत पाँच गाथाओं में से तीन गाथाएँ जीवसमास में यथाक्रम हैं। अन्त
की दो गाथाओं में से उपशम सम्यक्त्व का स्वरूप बतलानेवाली गाथा भी पाठभेद के साथ
जीवसमास में है। किन्तु वेदक सम्यक्त्ववाली गाथा के स्थान में अन्य गाथा है। इस तरह सत्प्ररूपणा की धवला टीका में उद्धत बहत-सी गाथाएँ पंचसंग्रह के जीवसमास नामक अधिकार में यथाक्रम विद्यमान हैं।।
अतः जीवसमास नाम का कोई अन्य ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है और न उसके अस्तित्व का ही संकेत मिलता है। अतः यही मानना पड़ता है कि वीरसेन स्वामी के द्वारा प्रमाणरूप से उद्धृत जीवसमास पंचसंग्रह के अन्तर्गत जीवसमास अधिकार ही होना चाहिए। इन्द्रियमार्गणा प्ररूपणा के अन्तर्गत एक गाथा उद्धृत करते हुए जो जीवसमास में ६६ नं. की है, उसका ‘आर्ष' शब्द से निर्देश किया है और तत्त्वार्थसूत्र से भी पूर्व में उसे स्थान दिया है। अतः जीवसमास का वीरसेन स्वामी के चित्त में बहुत आदर था; यह स्पष्ट है।
अब हम गोम्मटसार की ओर आते हैं
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