Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ०" स्थापत्यापुननिष्क्रमणम् ३६
मृल्म्-तएण से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेण एवं वुत्ते समाणे कण्ह वासुदेव एव व्यासी-जइ णं तुम देवाणुप्पिया। मम जीवियतकरण मच्चु एज्जमाण निवारेसि जर वा सरीरस्वविणासिणि सरीर वा अइवयमाण निवारेसि, तएण अह तव वाहुच्छाया परिग्गहिए विउल माणुस्सए कामभोगे भुजमाणे विहरामि ॥ सू० १३॥
टीका-'तएण से याचापुत्ते' इत्यादि । तत खलु स स्थापत्यापुत्र. कृष्णयासुदेवेनर मुक्तः सन् कृष्ण वासुदेवमेवमयादीत्-हे देवानुप्रिय ! यदि खल व मम " जीवियतकरण " जीवितान्तरण जीवन विनाशकारक, ‘मच्चु मृत्यु-मरणदुःख, 'एज्जमाण' एनमानन् आगच्छन्त, निवारयसि, 'जर वा' कारण इस का यह है कि मेरे राज्य में तुम्हें कुछ भी कष्ट नहीं होगा। में सदा तुम्हारी सहायता करता रगा। क्यों व्यर्थ में परम कष्ट साध्य दीक्षा ग्रहण करते हो-छोडो इसे । सत्र “११"
'तएण से थावाचापुत्ते कण्हे ण इत्यादि । टीकार्थ-(तएण) इसके बाद (से यायच्चापुत्ते कण्हे ण वासुदेवेण) कृष्णवासुदेव के द्वारा इस प्रकार कहे गये उस स्थापत्यपुत्र ने ( कण्ह वासुदेव एक बयासी) कृष्णवासुदेव से इस प्रकार कहा-(जहण तुम देवाणुप्पियो मम जीवियतकरणमच्चु एजमाण निवारेनि जर वा सरीरस्वविणासिणि मरीरवा अइवलमाण निवारेसि ) हे देवानुप्रिय ? यदि आपमेरे जीवन का अन्त करने वाली आते हुए मृत्यु को मुझ से दूर રાજ્યમાં રહેતા તમને કઈ પણ જાતની તકલીફ થશે નહિ હમેશા હુ તમારી મદદ માટે પડખે ઉભેજી શુ કામ વ્યર્થ નષ્ટ સાવ્ય-કડે–દીક્ષા ગ્રહણ કરવા रोया था छ। छडी मासपने। सूत्र “१३ "
(तरण से थावच्चापुत्ते कण्हेण इत्यादि )। ___साथ-(a um) त्या पछी (से यावच्चापुत्ते कण्हेण वासुदेवण) पासुहेव ५३मा गते उपायेखा स्थापत्या पुत्रे, (कण्ह वासुदेव एव वयासी) एy पासुदेवने मा प्रमाणे घु-( जण तुम देवाणुप्पिया मम जीविय तकरणमन्च एज्जमाण निगारेसि जर वा मरीररूपविणासिणि सरीर वा अइवयमाण निवारेसि ) हे पानुप्रिय ! ने तमे भा॥ ०१न नेनाश २ना भृत्यु ते