Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ०७ धन्यसार्थवाहचरितनिरूपणम् १८९ विसजेइ, तएणं साउज्झिया धपणस्स तहत्ति एयमढें पडिसुणेइ पडिसुणित्ता धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थाओ ते पच सालि अक्खए गेण्हइ गेण्हित्ता एगतमववकमइ एगतमवक्कमियाए इमेयारूवे अज्झथिए० एवं खलु तयाणं कोट्ठागारंसि बहवे पल्ला सालिणं पडिपुण्णा चिति । त जया णं मम ताओ इमे पच सालि अक्खए जाइस्सइ तयाण अह पलंतराओ अते पच सालि अक्खए गहाय दाहामि त्तिकट्ट एव सपेहेइ सपेहित्ता ते पच सालि अक्खए एगते एडेइ एडित्ता सकम्मसजुत्ता जाया यावि होत्था ॥ सू० ३॥
टीका-'एव सपेहेइ' इत्यादि-एव उक्तरूपेण सप्रेक्षतेमनसि विचार्यते 'सपेहिता समेक्ष्य-पर्यालोच्य कल्ये प्रभातसमये, यावत् तेजसा जलति, सूर्य उगते सति मित्रज्ञाति जनप्रमुखान् चतसणा स्नुपाणा कुलगृहवर्ग च-पित्गृहसम्बन्धिमाता पिनादीन्, आमनयति निमन्त्रयति, आमच्य विपुलमशनादिक चतुर्विधाहार उप
'एव सपेहेइ सपेहिता' इत्यादि । टीकार्थ-(एव सपेहेड) धन्यसार्थवाह ने इस पूर्वोक्त प्रकार अपने मन में विचार किया ( सपेहित्ती ) विचार करके ( कल्ल जाव मित्तणाइ० चण्ड सुण्डाण कुलघरवग्ग आमतेइ आमतित्ता विउल असण ४ उवक्खड़ावेइ ) फिर उसने प्रातकाल होते ही सूर्य के उदय हो जाने पर मित्र, ज्ञाति, स्वजन आदि को और चारों ही पुत्रवधूओ के कुल गृह वर्ग को-उनके माता पिता आदिको को आमत्रित किया । आमवित
एर सपेहेइ, सपेहित्ता' त्या !
Astथ--(एर सपेहेइ) धन्यसा या ३३ पोताना मनमा पियार व्यो (सपेहित्ता) विया२ १२ (कल्ल जाव मित्तणाइ चण्ह सुण्हाण कुलघर वग्ग आमतेइ आमतित्ता विउल असण ४ असहावेइ) बारे सूर्यध्यामता ની સાથે જ તેણે પિતાના મિત્ર, જ્ઞાતિ, સ્વજન વગેરેને અને ચરે ચાર પુત્ર વધાના બીજનોને તેમના માતાપિતા વગેરેને જમવા માટે આમત્રિત