Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भनगारधर्मामृतषिणो टीका अ० ८ मल्लीभगद्दीक्षो.सनिरुपणनम ५.५ ततः रलु नो टेवे द्रो देवराजो ग्ल्या अर्हत. केशान प्रतीच्छति लुचितान् वेशान से धरति महिपाय, झरोखर मुद्र प्रदिपति । त्त स्ल मल्ली उहनणमोऽयण सिद्धाण मोऽन्त ख्लू रिद्धेश्य' ति कृत्वा सामारिचारित्र प्रतिपद्यते-माप्नोति । यस्मिन समये च खलु ग्ल्लो हन चारित्र प्रतिपन , तस्मिन्नेव समये स्लु देवाना मनुष्याणा च ‘णिग्योसे' निर्घोप' शब्द', 'तुरिय णिणाय गीयवाक्ष्य निधोसे य' तूर्यनिनादगीतवादित्र निर्योपश्च-याधगीतध्वनिश्च, शकवचनसदेशेन-श्वेन्द्राशया, 'णिल के 'निलीन =तिरोहितः निवृत्त चाप्यभवत् ।
(तएण सक्के दविंद देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ पडिच्छि ताखोरोदग समुद्दे पविखवइ ) उन मल्लिं प्रभुके लुचित देशोंको शक देवेन्द्र देवराज ने अपने बस मे रग्ब लिया और रखकर क्षीर सागर मे उन्हे प्रक्षिप्त कर दिया । (तएण मल्ली अरहा " णमोत्युण सिद्धाणत्ति कट्टु सामाइयचरित्त पड़िवज्जइ ) मल्ली अर्हतने" सिद्धों को नमस्कार हो " ऐसा पाठ घोल कर सामायिक चारित्र को धारण किया। (ज समय च ण मल्ली अरहा चरित्त पडिवज्जइ त समय च ण देवाण मा. णुस्साण य णिग्धोसे तुरिय निणाय गीयवाइयनिग्धोसे य सक्कस्स वयणसदेसण णिलुक्के यावि होत्था ) जिस समय मल्ली अर्हत ने चारित्र को अगीकार किया था उस समय देयो और मनुष्यो का निर्घोष हुआ था तथा याजों एव गीतों की जो ध्वनि हुई थी यह सब शक्रेन्द्र की आज्ञा से बन्द कर दी गई।
(तएण सक्के देविदे देवरायामल्लिस्स केसे पडिच्छा पडिच्छित्ता खीरोंदगसमुद्दे पक्खिवइ)
તે મતલી પ્રભુના લુચિત વાળને શક દેવેન્દ્ર દેવરાજે પિતાના વસ્ત્રમાં લઈ લીધા અને લઈને ક્ષીર સાગમાં તેઓને નાખી દીધા (तएण मल्ली अरहा " णमोत्थुण त्ति कटु सामाइय चारित्त पडिविसज्जइ
મલી અહં તે “સિદ્ધોને મારા નમસ્કાર” આ પાઠનું વાચન કરતા સામાયિક ચારિત્ર ધારણ કર્યું
(ज समय च ण मल्ली अरहां चरित्त पडिवज्जइ, त समय च ण देवाण माणुस्साण य णिग्घोसे तुरिय निणाय गीयवाइयनिग्धोसे य सरकस्म वयण सदेसण णिलुक्के याविहोत्था)
જ્યારે મલ્લી અહં તે ચારિત્રને સ્વીકાર કર્યો ત્યારે દેવો અને માણ સોના થયેલા હર્ષ નિયને તેમજ વાજાઓ અને ગીતેના ધ્વનિને કેન્દ્ર પિતાના હુકમથી બધ કરાવી દીધા