Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतार्षिणी टी० अ० ९ मान्दिदारकवरितनिरूपणम् ___५७६ गजणकम्मगाररिलविआ । हाहाकृतपर्णधारनाविकवाणिजकननकर्मकरगिलपिता हाहाकृत -हाहाकारयुक्तैः कर्णधार =निर्यामकैः, नाविकै =पोतवाहकै , वाणिजकजन. व्यापारिजनैः, कर्मकरः भृत्यैः पिलपिता-विलापयुक्ता-कर्ण पारादीना हाहा कारेण विलाप कुर्वतीवेत्यर्थः 'णाणाविदरयणपणियसपुण्णा' नानाविधैः रत्नै.पण्यैश्चविक्रग्यवस्तुजातैः सम्पूणा-सम्भृता, बहुभिः पुरुषशतैः रुदद्भि कृन्दद्भिः शोचद्भिः, 'तिप्पमाणेहि तेपमान अश्रुणि मुञ्चदि विलपद्धिा, विलाप कुर्वदिः, एक महत् 'अतोजरगय' अन्तर्जन्गत जलमध्यस्थित गिरिशिखरमासाघम्सट्य 'सभग्ग कवतोरणा' सभग्नकृपतोरणा-सभग्नः त्रुटितः कृपा-कूपस्तम्भः-यत्र सितपटो बन गई थी (हा हा कयकण्णधारणा विव वाणियगजणकम्मगार विलविया) इस में जो कर्ण धार, नाविक, व्यापारिजन एव नौकरचाकर बैठे हुए थे वे सब के सब हाहाकार करते हुए विलाप कर रहे थे- अतः ऐसा मालूम होता था कि उनके हाहाकार विलापो से यह नौको स्वय विलाप कर रही है । (णाणा विदयणपणिय सपुण्णा) अ. नेक प्रकार के रत्नो से एव पण्य द्रव्यों से-विक्रेय्यवस्तुओं से-यह नौका भरी हुई थी। (रोयमाणेहिं कद० सोय तिप्प० विलयमाणेहि पट्टहिं पुरिसहिं एग मह अतोजलगय गिरिसिहरमासायइत्ता ) रुदन करनेवाले, आक्रन्दन करनेवाले, शोक करनेवाले, आसुओं को वहानेवाले ऐसे सैकडों पुरुषों से भरी हुई यह नौका एक बड़े भारी जलके भीतर रहे हुए गिरिके शिखर से टकरा गई-टकरोते ही (समग्गकृवजतनी तिथी ते नाव सारे ना२ ५sी ती ( हा हा फय कण्णधारण विव वाणियगजणकम्मगारविलविया )
તેમાં બેઠેલા કર્ણધાર, નાવિક, વેપારીઓ અને બીજા નેકર ચાકરો હાય, હાય, કરીને વિલાપ કરી રહ્યા હતા એથી એમ લાગતું હતું કે જાણે તેઓના विमाथी मा नाप चा विसा५ ४२ती नाय! (णाणाविहरयण पणिय सपुण्णा) uplladना २.ने। मने यानी पस्तुमाथी मा नाप पूरेपूरी नरी
ती (मेयमाणेहि कद० सोय० तिप्प० विलवमाणेहि पाहि पुरिसएहि एग मह अतोजल्गय गिरिसिहरमासायइत्ता )
રડનારા, કરુ, આકદ કરનારા શેકથી પીડાતા, ચોધાર આંસુઓ વહેવડાવનારા, વિલાપ કરનારા એવા સેકડે માણસેથી ચિડાર ભરેલી તે નાવ આખરે પાણીની અંદરના જ પર્વત શિખર (ખડક) સાથે અથડાઈ પડી અને मयतानी माथे ( सभागकूवतोरणा तना पन्तले भने । तटी