Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भनगारधर्मामृतवपिण टीका भ० ८ महादलादिषट्र राजस्वरूपनिरूपणम् ०४७ स्थेविरे -'मा विलम्न कुरु' इत्येवमुक्त सन् स्वमाने समागत्य यावत् तान् पडपि वालवयस्यकान अपृच्छति । तत खलु ते पडपि च वाल्वयस्यका महावल रोजानमेचमवादी-यदि खलु देवानुप्रियाः! यूय प्रजिष्यथ, अस्माक कोऽन्य आधारो वा बारम्मो का भविष्यति यावत्-तस्माद् युप्माभि सहैव वय प्रव्रजामः। तत खलु स महावलो राजा तान् पडपि च वालवयस्यकान् एवमवादीत् यदि खलु यूय मया साधं यावत् प्रव्रजिप्यथ, तर्हि खलु स्व स्वभवन गच्छत ज्ये. इस विषय में पूछ लू और चलभद्र कुमारको राज्य में स्थापित कर दें पीछे आपके पास सयम लूगा । इस प्रकर राजा का कथन सुनकर स्थवि रों ने उससे " मा बिलम्ब कुरू" विलम्ब मत करो ऐसा कहास्थविरों द्वारा अनुमत हो कर राजा अपने घर पर वहां से वापिस आया और आते ही उस ने (जोच छप्पिय चाल वयसए आपुच्छड ) अपने बाल काल्य के उन छह मित्रो से पूछौ ।
(तएण ते छप्पिय पालवयसगा मध्चल राय एव वयासी) अपने मित्र महायल की बात सुनकर उन मित्रों ने उससे ऐसा कहा( जहण देवा० जाव पव्ययामो) मित्र ! यदि आप दीक्षा लेना चाहते हैं तो फिर हमारा आपके पाद और कौन दूसरा आलयन तथा आधार होगा-इसलिये हम भी आप ही के साथ दीक्षा सयम धारण करेगे। (तएण एव धयासी) इस प्रकार अपने बाल कल्य के मित्रा की यात सुनकर राजा महायल ने उन से कहा ( जहण तुम्भे मए सद्धिं जाव હું પૂછી લઉ અને બલભદ્ર કુમારને રાજ્યાસને બેસાડી દઉ ત્યાર બાદ તમારી પાસેથી સ યમ ગ્રહણ કરીશ “આ રીતે જાની વિનતી સાભળીને स्थविशय ते ४ -" मा विलम्न कुरु, मोड ४२। नडि " साम स्थविशनी આજ્ઞા મેળવીને તે રાજા પોતાને ઘેર પાછો વળે ઘેર આવીને તેણે (રાવ छपियबालवयसए आपुच्छइ पाताना ७ मालसामान पूछ्यु
(तपण ते छपियवाल्वयसगा महबल राय एव वयासी ) पोताना भित्र भामसानी वात सामान त मित्राय तेन घु-" जइण देवा जाव पच्चयामो) ७ भित्र५२ ! तमे क्षित यत्रा याडी छ। तो अभा। और આલ બન અને આધાર થશે ? એથી અમે પણ તમારી સાથે જ દીક્ષા સ યમ धारण ४शशु (तएण एव वयासी) मा शत पाताना माल सणासानी વાત સાંભળીને મહાબલે તેમને કહ્યું___(जइण तुम्भे मए सद्धि जाव पव्ययह तोण गच्छह जेहे पुत्ते सरहिं २ रज्जे