Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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माताधर्मकथा वानुमियस्योपसर्ग करोमि । नो चैत्र खलु देवानुप्रियाः ! भीता वा प्रसिता वा उद्विग्ना वा सजातभया या जाताः । तद्-तस्माद् यत् खलु शको देवेन्द्रोदेवरामो वदति, सत्यः खल एपोऽयों दृष्ट । तद् तस्मात् दृष्टा सलु देवानुमियाणा भव वाम् ऋद्धिा गुणानामैश्वर्यम् , घुतिः मान्तर तेजा, यशापयातिः, यावर-अत्र यावच्छन्देनेद द्रप्टव्यम् चल-शारीर पराक्रम, पीयम् भात्मिक पलम् , पुरुपकारः
देखकर मैं ईशान कोण फी और गया। वहा जाकर मैंने उत्तर वैक्रिय की रचना की-रचना कर उस देवभव सम्यधी उत्कृष्ट गति से जहां समुद्र था और जहां आप देवनुप्रिय थे वहा में आया (उवागच्छिन्ता देवाणुपियस्स उवसग्ग करेमि) आकर मैंने फिर आप देवानुप्रियके ऊपर उपसर्ग करना प्रारभ करदिया। (णो चेवण देवाणुप्पिया भीया वा त जण्णं सक्के देविंदे देवराया बदइ सच्चे ण एसमठे) परन्तु आप देवानु प्रिय भीत नहीं हुए, घस्त नहीं हुए त्रसित नहीं हुए उद्विग्न नहीं हुए और न उत्पन्न हुआ है भय जिस को ऐस ही हुए। इस लिये मैंने जैसा आपके विषय में शक्रदेव राजा देवेन्द्र ने कहा था वैसा ही आपको देखा-(त दिछेण देवाणुप्पियाण इड्डी, जुई जसे जाव परकमे, लद्धे पत्त अभिसमन्नागए) अब मैंने आपके गुणों का ऐश्वर्य देखलिया प्रत्यक्ष कर लिया। आपकी द्युति-आन्तरतेज, आपकी ख्याति यावत् शब्द से आप का शारीरिक पराक्रम, आपका आत्मिक बल आपका स्वधर्म में दृढता
ઇને હ ઈશાન કોણ તરફ ગયે ત્યાં જઈને મે ઉત્તર વૈકિયની રચના કરી, રચના કરીને તે દેવભવ સબંધી ઉત્કૃષ્ટ ગતિથી જ્યા સમુદ્ર હતા અને જ્યાં દેવાનુપ્રિય તમે હતા ત્યા આ (उवागज्छित्ता देवाणुप्पियस्स उवसग्ग करेमि ) -આવીને દેવાનુપ્રિય તમારા ઉપર ઉપસર્ગ ( બાધા) શરૂ કર્યો
(णो चेव ण देवाणुप्पिया भीया वा त जण सक्के देविदे देवराया बदइ सच्चे ण एसमढे)
પણ દેવાનુપ્રિય તમે તેનાથી ડર્યા નથી, ત્રસ્ત થયા નથી, સિત થયા નથી, ઉદ્વિગ્ન થયા નથી તેમજ તમારામાં ભય ઉત્પન્ન થયે નથી એથી તમારા વિષે શક દેવરાજે જે કઈ કહ્યું છે તે તમને જેતા બરાબર લાગે છે (त दिटेण देवाणुप्पियाण इड्री, जुई जसे जाव परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्त्रागए)
હવે મે તમારા ગુણેની સમૃદ્ધિ જોઈ લીધી છે તમારી વૃતિ આતર તેજ, તમારી પ્રસિદ્ધિ યાવત્ શબ્દ વડે તમારા શરીરનું શુરાતન, તમારૂ