Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका अ० ८ कोसलाधिपतिश्वरूपनिरूपणम्
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हस्ते धृतवत्यः पृष्ठतः समनुगच्छन्ति । ततः खलु मा पद्मानती देवी सद्विर्था= सखिदास्यादिपरिजनैः सह यत्रैव नागगृह तनैनोपागच्छति, उपागत्य नागगृहमनुप्रविशति, अनुप्रविश्य रोमहस्तक - मयूरपिच्छनिर्मितमार्जनी गृहीत्वा नागगृह समाय यावद धूप दवि, नागगृहाभ्यन्तरे समन्तात् धूप दहति स्म । धूपं दवा प्रतिबुद्धि = पतिबुद्धिनृप स्वपतीं मतिपल्यन्ती प्रतिपालयन्ती - पुनः पुनः प्रतीक्षमाणा तिष्ठति स्म ॥ सू० १६ ॥
पुष्पड महत्थगयाओ धूवक डुच्छग हत्थगयाओ पिओ समणुगच्छति ) उसके पीछे २ उस की अनेक दास चेटिया पुष्प करण्डों को और धूप के पात्रों को हाथो में लिये हुए चली । (तएण परमावई सविडिए जेणेव नागघरे तेणेच उवागच्छह, उवागच्छित्ता नागघरय अणुविस, अणुपविसित्ता लोमहत्वग जाव धूव डड डरिता पडि बुद्धि पडिवालेमाणी २ चिट्ठह ) इस के अनन्तर पद्मावती सखी, दासी आदि परिजन रूप अपनी समस्त ऋद्धि के साथ जहा वह नाग घर था वहाँ आई वहां आकर वह नाग घर के भीतर गई भीतर जाकर उसने वहा रखी हुई मयूर पिच्छ निर्मित मार्जनी को उठाया उठा कर उस ने उससे उस नागघर को झाडा झाड कर फिर उस ने वहा यावत् धूप जलाई | धूप जला कर फिर वह अपने पतिदेव प्रतिबुद्धि राजा की प्रतीक्षा करती हुई बैठ गई। सूत्र
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(तरण परमावईए दास वेडीओ बहूओ पुप्फपडलगहत्थगयाओ धूवाडerrerana fugओ समणुगच्छति )
તેની પાછળ ઘણી દાસ-દાસીઓ હાથેામા ઉંચકી ચાલવા લાગી
પુષ્પ કરણ્ડકા તેમજ પદાનીએ
(तएण पउमावई सन्निड्डिए जेणेव नागघरे तेणेव उवागच्छ आगच्छित्ता नागघरय अणुपत्रिसड अणुपविसित्ता लीमहत्थग जाव धूव डहड़ डहित्ता पडिवुद्धि पडिनालेमाणी २ चिर )
આરીતે પદ્માવતી દેવી સખી દાસી વગેરે પરિજન રૂપ પાતાની સપૂર્ણ ઋદ્ધિની સાથે જ્યા તે નાગધર હતુ ત્યા પહેાચી અને ત્યા પહેાચીને તે નાગઘરનો આદર ગઈ ત્યા જઈને તેણે મેરપીછી હાથમા લીધી અને ત્યાર પછી તેણે નાગધરને સ્વચ્છ નાયુ નાગધરની મફાઈ કરીને તેણે ધૂપ સળગાન્યા અને પછી પોતાના પતિ પ્રતિબુદ્ધિની પ્રતીક્ષા કરતી ત્યા જ બેસી ગઈ સૂ ૧૬