Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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हाताधर्मकथाम 'तण्ण से सुए ' इत्यादि।
टीका-ततः खलु म शुकः परिवाजकः सुदर्शननामक येष्ठिनम् एव वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत्-तत्-तस्मात् गन्छामः सलु मुदर्शन ! तर धर्माचार्यम्य स्थापत्यापुत्रस्यान्तिके प्रादुर्भवामः । ' इमाइ च ' इमान् अनन्तरमेव वक्ष्यमाण तया सनिकृष्टान, च शब्दादन्याश्च सलु एतद्रूपान्य माणम्परूपान् , अर्थान: अर्यमाणत्वाद् अधिगम्यमानत्वादर्था' भावा वक्ष्यमाणयात्रा यापनीयादयस्तदन्पे हेतून् अवयव्यतिरेकलक्षगहेतुना ज्ञायमानत्वाद् हेतुरूपास्तान् , मश्नान प्रश्नवि पयत्वात् प्रश्नरूपास्तान्, कारणानिकारण तत्साधकयुक्तिरूपम् , उपपतिमात्र तद्विपपत्ताद् कारणानि तानि, व्याकरणानि सप्रमाण व्यारयायमानत्वात् व्याकरणानि च तानि. पृच्छाम' । तद्-तस्माद् यदि खलु मम स स्थाप
'तएण से सुए' इत्यादि।
टीकार्य-(तएण) इसके बाद (से सुप)उसशुक (परिव्वायए) परिवा जक ने (सुदसण एव वयासी ) सुदर्शन से ऐसा कहा-(त गच्छामो ण सुदसणा! तव धम्मायरियम्म यावच्चापुत्तस्स अतिय पाउन्भवामो) तो हे सुदर्शन ! मैं यहाँ से-अब तुम्हारे धर्मचार्य स्थापत्यापुत्र के पास जाता है। (इमाइ च ण ण्यारूवाइ अट्ठाइ हेइ पसिणाइ कारणाइ चागरणाइ पुच्छामो त जडण मे से इमाइ अट्ठाइ जाव वागरह, तएण अह वदामि नमसामि, अत्मे से इमाइ अट्ठोइ जाव नो से वागरेइ तएण अह एएहिं चेव अतुहिं हे उहिँ निप्पपसिण वागरण करिस्सामि) और इस प्रकार के इन अर्थो को, हेतुओ को, प्रश्नों को कारणो को, व्याकरणों को, उनमे पूछ गा, यदि वे मेरे इन अर्थों का यावत् व्याकरणो प्रश्न
'तए ण से सुण् इत्यादि। __ ( तएण) त्या२ मा ( से सुए) शु (परिवायए) परिमा (सुदस ण एव घयासी) सुशनने या प्रमाणे उधु (ते गच्छामो णं सुदसणी! तव धम्मायरियास थावच्चापुतरस अतिय पोउभवामो) सुहान! ते ३ मही थी हु भाछ। तारा धर्म शुभ स्था५ यापुनी पासे ४६ ७ (इमाइ चर्ण पयारुवाइ अट्टाइ हेइ पलिणाइ कारणाइ वागरणाइ पुच्छामो त जइण में से इमाइ, अट्ठाइ, जाव बागरइ तएण अह वदामि, नमसामि, अहमेसे इमाइ अट्ठाइ जाव नो से वागरेइ तए अह एएहिं चेत्र अटेहिं हेउहिं निप्प ट्रपसिण वागरण करिस्सामि) तेमनी साये हु अथी, अतुमा, प्रश्नो, २, અને વ્યાકરણ ના વિશે ચર્ચા કરીશ, જે તે મારા અર્થો, હેતુઓ. પ્ર.